महत्व

May Ekadashi 2024 :मोहिनी एकादशी महत्व, तिथि और व्रत कथा

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। हर महीने में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों में एकादशी तिथि आती है। इनमें से मोहिनी एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। साल में दो बार आने वाली मोहिनी एकादशी भगवान विष्णु और उनकी मोहिनी रूपी अवतार को समर्पित है। आइए, इस लेख में मोहिनी एकादशी की तिथि, महत्व, पौराणिक कथा, व्रत विधि और लाभों के बारे में विस्तार से जानें।

मोहिनी एकादशी महत्व, तिथि और व्रत कथा

मोहिनी एकादशी तिथि

मोहिनी एकादशी 19 मई सुबह 05 बजकर 33 मिनट से प्रारंभ होगी और 20 मई सुबह 08 बजकर 20 मिनट पर समाप्त होगा

मोहिनी एकादशी का महत्व

मोहिनी एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और देवी मोहिनी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की भक्ति करने से व्यक्ति को कई लाभ प्राप्त होते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति: मोहिनी एकादशी के व्रत से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।
  • पापों का नाश: इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: मोहिनी एकादशी का व्रत मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • इच्छाओं की पूर्ति: सच्चे मन से की गई शुभ मनोकामनाएं मोहिनी एकादशी के व्रत से पूरी हो सकती हैं।
  • परिवारिक कल्याण: इस व्रत को करने से व्यक्ति के परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
  • अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति: मोहिनी एकादशी का व्रत रखने और सात्विक आहार लेने से व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

मोहिनी एकादशी का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि स्वयं भगवान शिव ने भी इस दिन व्रत रखा था। शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने मोहिनी एकादशी का व्रत रखकर अमरत्व प्राप्त किया था।

मोहिनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक व्रत कथाएं

मोहिनी एकादशी से जुड़ी दो प्रमुख पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं:

पहली कथा: समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला, तो देवताओं और असुरों में अमृत को लेकर संघर्ष छिड़ गया। देवता अमृत प्राप्त करने में असमर्थ थे, क्योंकि असुर बलवान थे। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। मोहिनी रूप में भगवान विष्णु इतने मनमोहक थे कि असुर मोहित हो गए। मोहिनी ने असुरों को अमृत वितरण करने का वादा किया, लेकिन पहले उन्हें कतार में खड़ा होने के लिए कहा। इस दौरान भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पिला दिया। जब असुरों को धोखा पता चला, तो उन्हें क्रोध आया, लेकिन तब तक देवता अमृत का सेवन कर चुके थे और अमर हो चुके थे।

दूसरी कथा: दूसरी कथा के अनुसार, राजा महीध्वज एक धर्मात्मा राजा थे। उनकी रानी चंद्रभामा भी बहुत ही धार्मिक थीं। उनके राज्य में एक बार भयंकर सूखा पड़ा।

रानी चंद्रभामा ने इस सूखे से मुक्ति पाने के लिए उपाय ढूंढने शुरू किए। एक दिन उन्हें एक विद्वान ब्राह्मण मिले, जिन्होंने उन्हें मोहिनी एकादशी का व्रत रखने का सुझाव दिया। रानी चंद्रभामा ने पूरे विधि-विधान से मोहिनी एकादशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु की आराधना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने राजा महीध्वज के राज्य में शीघ्र ही वर्षा करवाई। सूखे से मुक्ति मिलने के बाद राज्य में फिर से खुशहाली लौट आई।

इन दोनों कथाओं से मोहिनी एकादशी के महत्व को समझा जा सकता है। यह व्रत न केवल भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि इससे मोक्ष प्राप्ति, पापों का नाश और इच्छाओं की पूर्ति भी हो सकती है।

मोहिनी एकादशी का व्रत विधि

मोहिनी एकादशी के व्रत को विधि-विधान से करने से ही इसका पूरा फल मिलता है। व्रत की तैयारी दशमी तिथि से ही शुरू हो जाती है। आइए, मोहिनी एकादशी के व्रत विधि के बारे में विस्तार से जानें:

दशमी तिथि: दशमी तिथि के दिन सात्विक भोजन करें और शाम को हल्का भोजन ग्रहण करें। रात में जल्दी सो जाएं।

एकादशी तिथि:

  • सुबह स्नान: एकादशी तिथि के सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करें। स्नान के जल में गंगाजल मिलाना शुभ माना जाता है।
  • संकल्प: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
  • पूजा: एक चौकी पर स्वच्छ आसन बिछाएं और उस पर भगवान विष्णु और देवी मोहिनी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। भगवान विष्णु और देवी मोहिनी को फल, फूल, धूप, दीप और तुलसी अर्पित करें। भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और “मोहिनी एकादशी व्रत कथा” का पाठ करें।
  • व्रत: पूजा के बाद दिन भर उपवास रखें। फलाहार ग्रहण किया जा सकता है।
  • रात्रि जागरण: रात में भजन-कीर्तन करें और भगवान विष्णु का नाम जपें।

द्वादशी तिथि:

  • पारण: द्वादशी तिथि के दिन सूर्योदय के बाद ब्राह्मण को भोजन करवाएं और उनका आशीर्वाद लें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें। इस प्रकार मोहिनी एकादशी का व्रत पूरा होता है।

ध्यान देने योग्य बातें:

  • जो लोग उपवास करने में असमर्थ हैं, वे एक समय भोजन कर सकते हैं।
  • गर्भवती महिलाओं, रोगियों और वृद्ध व्यक्तियों को अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए।
  • व्रत के दौरान सकारात्मक विचार रखें और क्रोध से बचें।

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पूछे जाने वाले प्रश्न

मोहिनी एकादशी का व्रत किन लोगों को नहीं रखना चाहिए?

मोहिनी एकादशी का व्रत शारीरिक क्षमता के अनुसार रखना चाहिए। जो लोग उपवास करने में असमर्थ हैं, वे एक समय सात्विक भोजन कर सकते हैं। गर्भवती महिलाओं, रोगियों और वृद्ध व्यक्तियों को अपनी शारीरिक क्षमता का ध्यान रखना चाहिए। व्रत के दौरान सकारात्मक विचार रखें और क्रोध से बचें। अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार ही व्रत रखें और यदि अस्वस्थ महसूस करें, तो व्रत तोड़ सकते हैं।

मोहिनी एकादशी के व्रत से क्या लाभ मिलते हैं?

मोहिनी एकादशी का व्रत आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाता है और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, पापों का नाश होता है और मनोवांछित फल मिलते हैं। साथ ही, इस व्रत से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है और व्यक्ति का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।

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