फाल्गुन पूर्णिमा, हिंदू धर्म में एक पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहार है। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार वर्ष का अंतिम पूर्णिमा दिवस होता है और चैत्र मास के आगमन का सूचक माना जाता है। रंगों के उत्सव होली से ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली फाल्गुन पूर्णिमा को कई नामों से जाना जाता है, जैसे – होलिका दहन, महाशिवरात्रि (कुछ क्षेत्रों में) और सीता अष्मी (कुछ समुदायों में)। यह लेख फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि, पूजा विधि, धार्मिक महत्व, पौराणिक कथाओं, मंत्रों और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए किए जाने वाले उपायों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है।
तिथि और शुभ मुहूर्त (2024)
वर्ष 2024 में फाल्गुन पूर्णिमा 24 मार्च, रविवार को पड़ रही है। पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 24 मार्च, 2024 को सुबह 09 बजकर 54 मिनट पर होगा और पूर्णिमा तिथि का समापन 25 मार्च, 2024 को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा। ज्योतिषियों के अनुसार, इस दिन होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6:24 बजे से रात 9:27 बजे के बीच है।
पूजा विधि
फाल्गुन पूर्णिमा के पवित्र अवसर पर भक्त शुभ स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद अपने घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें और भगवान शिव, पार्वती, गणेश और हनुमान जी की विधिवत पूजा करें। आप “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप कर सकते हैं। इसके पश्चात् चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा है। आप चावल, दूध, पुष्प और जल से बना हुआ अर्घ्य चंद्रमा को अर्पित कर सकते हैं। ऐसा करते समय “ॐ सोमेश्वराय अर्घ्यं समर्पपयामि” मंत्र का उच्चारण करें।
शाम के समय होलिका दहन की तैयारियां आरंभ हो जाती हैं। लोग लकड़ी और गोबर के उपले इकट्ठा करते हैं और एक ऊँचे स्थान पर होलिका का निर्माण करते हैं। रात में शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। इस दौरान “ॐ ज्वल ज्वलन्ति ज्वालाभिः, स प्रज्वलित हुताशनः। विश्वान्देवाँ सवित्री च, स नो अग्निः सुभगो ददातु॥” मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है। होलिका दहन के बाद अग्नि की परिक्रमा करें और प्रसाद ग्रहण करें।
फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
फाल्गुन पूर्णिमा का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह दिन आध्यात्मिक शुद्धिकरण, आंतरिक शांति प्राप्ति और सकारात्मक ऊर्जा के संचरण का प्रतीक है। इस दिन भक्त भगवान शिव और पार्वती की पूजा कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है।
फाल्गुन पूर्णिमा का एक महत्वपूर्ण पहलू बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव है। होलिका दहन की परंपरा इसी तथ्य को दर्शाती है। होलिका दहन के माध्यम से हम बुराई का नाश करके सकारात्मकता का संदेश फैलाते हैं।
फाल्गुन पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भक्त प्रह्लाद और होलिका दहन की पौराणिक कथा मनाई जाती है। हिरण्यकश्यप, जो असुरों का राजा था, भगवान विष्णु का घोर शत्रु था। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को कई बार भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ने के लिए मनाया, लेकिन प्रह्लाद डटा रहा।
हताश होकर, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करने का आदेश दिया। होलिका को वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। लेकिन जब होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में प्रवेश किया, तो भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जल गई।
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पूछे जाने वाले प्रश्न
फाल्गुन पूर्णिमा को इस वर्ष (2024) किस दिन मनाया जाएगा?
वर्ष 2024 में फाल्गुन पूर्णिमा रविवार, 24 मार्च को पड़ रही है। पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 24 मार्च को सुबह 09 बजकर 54 मिनट पर होगा और इसका समापन 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 24 मार्च को शाम 6:24 बजे से रात 9:27 बजे के बीच है।
फाल्गुन पूर्णिमा पर किन देवताओं की पूजा की जाती है?
फाल्गुन पूर्णिमा पर मुख्य रूप से भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। आप भगवान गणेश और हनुमान जी की भी पूजा कर सकते हैं। “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।
फाल्गुन पूर्णिमा पर चंद्रमा को अर्घ्य देने का क्या महत्व है?
फाल्गुन पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कला में होता है, माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की ऊर्जा पृथ्वी पर अधिक प्रभाव डालती है। चंद्रमा को अर्घ्य देने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है और मन को शांति मिलती है। आप चावल, दूध, पुष्प और जल से बना हुआ अर्घ्य चंद्रमा को अर्पित कर सकते हैं। “ॐ सोमेश्वराय अर्घ्यं समर्पपयामि” मंत्र का उच्चारण करना शुभ होता है।
होलिका दहन का क्या महत्व है और इसे कैसे किया जाता है?
होलिका दहन फाल्गुन पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। हिरण्यकश्यप नामक राक्षस की बहन होलिका के दहन की कथा इससे जुड़ी हुई है। होलिका दहन के लिए शाम के समय लकड़ी और गोबर के उपले इकट्ठा करके एक ऊँचे स्थान पर होलिका का निर्माण किया जाता है। शुभ मुहूर्त में “ॐ ज्वल ज्वलन्ति ज्वालाभिः, स प्रज्वलित हुताशनः। विश्वान्देवाँ सवित्री च, स नो अग्निः सुभगो ददातु॥” मंत्र का जाप करते हुए होलिका को जलाया जाता है। होलिका दहन के बाद अग्नि की परिक्रमा की जाती है और प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
फाल्गुन पूर्णिमा पर कौन से उपाय करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है?
फाल्गुन पूर्णिमा पर कुछ सरल उपाय करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं।
इस दिन दान-पुण्य करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करें।
इस दिन चंद्रमा को दूध और जल से बना हुआ अर्घ्य देने से मन को शांति मिलती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है।