देवकी

देवकी कैकई थी और यशोदा कौशल्या, भगवान श्री कृष्ण ने सुनाई माता देवकी को पिछले जन्म की बात

मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के वध के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण सीधे कारागृह की ओर गए। वहां उन्होंने अपने माता-पिता, देवकी और वसुदेव को कारावास से मुक्त कराया। वर्षों के कष्ट सहने के बाद माता देवकी अपने लाडले बेटे को देखकर भावविभोर हो उठीं। उनके हृदय में एक प्रश्न कौंध उठा, जिसे उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा।

देवकी कैकई थी और यशोदा कौशल्या

देवकी और यशोदा के कर्मों का फल: पूर्व जन्म का संबंध

माता देवकी का प्रश्न: “हे कृष्ण, तुम तो भगवान हो। तुम्हारे पास असीम शक्ति है। फिर भी तुमने इतने साल तक कंस को मारने और हमें इस कारागृह से मुक्त कराने में विलंब क्यों किया?”

श्रीकृष्ण का उत्तर: “क्षमा करें, आदरणीय माता जी। क्या आपको याद नहीं है कि आपने मुझे पिछले जन्म में चौदह साल के लिए वनवास में कैसे भेजा था?”

यह सुनकर माता देवकी अत्यधिक आश्चर्यचकित हो गईं। उन्होंने पूछा, “बेटा, यह कैसे संभव है? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?”

इसके उत्तर में श्रीकृष्ण ने कहा, “माता, आपको अपने पूर्व जन्म का स्मरण नहीं है। परंतु तब आप कैकेयी थीं और आपके पति राजा दशरथ थे।”

माता देवकी और भी आश्चर्य में पड़ गईं और पूछा, “तो फिर महारानी कौशल्या कौन थीं?”

श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा, “वही तो इस जन्म में माता यशोदा हैं। जिन मातृत्व के सुख से आप पिछले जन्म में वंचित रहीं, वह आपको इस जन्म में माता यशोदा के रूप में प्राप्त हुआ है।”

कर्मफल दाता श्रीकृष्ण: इस संवाद के माध्यम से श्रीकृष्ण ने कर्मों के सिद्धांत को स्पष्ट किया है। भले ही कोई व्यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसे अपने कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है। यहां तक कि स्वयं श्रीकृष्ण, जो भगवान हैं, उन्होंने भी देवकी के पिछले जन्म के कर्मों के फल को भुगताने में विलंब नहीं किया।

विनम्रता का सार: क्षमा मांगते भगवान

श्रीकृष्ण के इस वचन से यह भी स्पष्ट होता है कि भगवान होने के बावजूद उनमें अहंकार नहीं है। उन्होंने अपनी माता से क्षमा मांगी। भले ही माता देवकी ने उन्हें पिछले जन्म में कष्ट दिया था, फिर भी श्रीकृष्ण ने विनम्रता का परिचय देकर क्षमा मांगी। यह विनम्रता का एक महान उदाहरण है।

माता-पिता के प्रति प्रेम और कर्तव्य का पालन

इस संवाद में श्रीकृष्ण ने माता-पिता के प्रति प्रेम और सम्मान का भी प्रदर्शन किया है। उन्होंने न केवल माता देवकी और वसुदेव को कारावास से मुक्त कराया, बल्कि माता देवकी को पिछले जन्म के कर्मों के फलस्वरूप मिले वनवास के दु:ख का बदला भी दिया। उन्होंने माता देवकी को माता यशोदा के रूप में मातृत्व का सुख पुनः प्रदान किया। यह इस बात का प्रमाण है कि श्रीकृष्ण माता-पिता के प्रति अपने प्रेम और कर्तव्य का पालन करते हैं।

पूर्व जन्मों की कथा: हिंदू धर्म में पुनर्जन्म के सिद्धांत को माना जाता है। आत्मा मृत्यु के बाद एक नए शरीर में जन्म लेती है। श्रीकृष्ण के इस कथन से यह सिद्ध होता है कि आत्मा के पिछले जन्मों के कर्म वर्तमान जन्म को प्रभावित करते हैं।

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पूछे जाने वाले प्रश्न

कारागृह से मुक्त होने के बाद माता देवकी ने श्रीकृष्ण से क्या प्रश्न किया?

कारागृह से मुक्त होने के बाद माता देवकी ने श्रीकृष्ण से पूछा कि वह भगवान होने के बावजूद चौदह साल तक कंस को मारने और उन्हें बचाने के लिए क्यों नहीं आए। उनका यह प्रश्न इस बात को दर्शाता है कि माता देवकी को यह समझ नहीं आ रहा था कि भगवान श्रीकृष्ण इतने समय तक कंस को अत्याचार करने क्यों देते रहे।

श्रीकृष्ण ने माता देवकी को उनके पिछले जन्म के बारे में क्या बताया?

श्रीकृष्ण ने माता देवकी को बताया कि उनके पिछले जन्म में वे महाराजा दशरथ की रानी कैकेई थीं। कैकेई ने अपने पुत्र भरत को राजा बनाने के लिए श्रीराम को चौदह साल का वनवास दिलाया था। श्रीकृष्ण ने यह कहकर माता देवकी को जन्म-मृत्यु के चक्र और कर्मफल के सिद्धांत को समझाया।

श्रीकृष्ण के इस कथन से माता यशोदा का संबंध क्या है?

श्रीकृष्ण ने बताया कि कैकेई के रूप में माता देवकी ने जिस मातृत्व सुख से पिछले जन्म में वंचित रहीं, उन्हें इस जन्म में माता यशोदा के रूप में प्राप्त हुआ। श्रीकृष्ण यह बता रहे थे कि कर्मों का फल एक जन्म में ही नहीं, बल्कि कई जन्मों में भी मिलता रहता है।

इस संवाद से विनम्रता का क्या पाठ मिलता है?

भगवान श्रीकृष्ण, जिन्हें समस्त सृष्टि का स्वामी माना जाता है, अपनी माता से क्षमा मांगते हैं, भले ही माता देवकी ने उन्हें पिछले जन्म में वनवास नहीं भेजा था। यह विनम्रता का एक सुंदर उदाहरण है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव विनम्र होना चाहिए, चाहे हम किसी भी पदवी पर क्यों न विराजमान हों।

श्रीकृष्ण और माता देवकी के संवाद से मानव जीवन के लिए क्या संदेश मिलता है?

श्रीकृष्ण और माता देवकी के संवाद से यह संदेश मिलता है कि मनुष्य को सदैव कर्म के सिद्धांत का पालन करना चाहिए। अपने कर्मों का फल हमें अवश्य प्राप्त होता है। साथ ही, इस संवाद में विनम्रता, माता-पिता के प्रति प्रेम और सम्मान, तथा अहंकार से दूर रहने जैसे मानवीय मूल्यों का भी महत्व बताया गया है।

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