गीता

गीता में इस भोजन को बताया गया है शरीर के लिए उत्तम, जाने क्या है स्वस्थ भोजन के नियम

गीता में बताया गया है कि हम जो भोजन करते हैं, उसका हमारे मन और शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है. अनुचित भोजन आदतें अकाल मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं. भोजन हमारे दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह न केवल हमें ऊर्जा प्रदान करता है, बल्कि हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी गहराई से प्रभावित करता है. गीता में भोजन के बारे में विस्तृत मार्गदर्शन दिया गया है.

गीता में वर्णित भोजन के तीन गुण

श्रीमद्भगवद्गीता भोजन को तीन गुणों में वर्गीकृत करती है: सात्विक, राजसी और तामसिक. हर गुण का भोजन हमारे मन और शरीर को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है.

  • सात्विक भोजन: यह शुद्ध, ताजा, पौष्टिक और हल्का होता है. सात्विक भोजन मन को शांत, सकारात्मक और एकाग्र बनाता है. साथ ही, यह शरीर को स्वस्थ और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है. दूध, फल, सब्जियां, दालें और साबुत अनाज सात्विक भोजन के कुछ उदाहरण हैं.
  • राजसी भोजन: यह भोजन तीखा, मसालेदार और उत्तेजक होता है. राजसी भोजन अल्पकालीन ऊर्जा तो देता है, लेकिन यह मन को अशांत और चंचल बना सकता है. साथ ही, इससे शरीर में थकान और बेचैनी की अनुभूति हो सकती है. मांस, मछली, अंडे, चाय और कॉफी राजसी भोजन के कुछ उदाहरण हैं.
  • तामसिक भोजन: यह भोजन बासी, जंक और अशुद्ध होता है. तामसिक भोजन मन को सुस्त और निष्क्रिय बनाता है. साथ ही, यह शरीर को बीमार और कमजोर बना सकता है. मांस, मदिरा, तंबाकू और बासी भोजन तामसिक भोजन के कुछ उदाहरण हैं.

गीता में बताए गए स्वस्थ भोजन के नियम

श्रीमद्भगवद्गीता न केवल भोजन के प्रकारों का वर्णन करती है, बल्कि यह स्वस्थ भोजन आदतों को अपनाने पर भी बल देती है. गीता में वर्णित कुछ महत्वपूर्ण भोजन नियम इस प्रकार हैं:

  • शांत और सकारात्मक वातावरण में भोजन ग्रहण करना चाहिए.
  • भोजन को जल्दबाजी में न खाकर, धीरे-धीरे और अच्छी तरह चबाना चाहिए.
  • केवल भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए और आवश्यकता से अधिक नहीं खाना चाहिए.
  • भोजन को ईश्वर को अर्पित करने की भावना से ग्रहण करना चाहिए. ऐसा करने से अहंकार का भाव कम होता है और कृतज्ञता का भाव जाग्रत होता है.

स्वस्थ जीवन के लिए भोजन का महत्व

श्रीमद्भगवद्गीता में इस बात पर जोर दिया गया है कि हम जो भोजन करते हैं, उसका हमारे जीवनकाल पर सीधा प्रभाव पड़ता है. अनुचित भोजन आदतें और मुख्य रूप से तामसिक भोजन का सेवन अकाल मृत्यु का कारण बन सकता है. उपदेशों का पालन करके और सात्विक भोजन को अपनाकर, हम न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकते हैं, बल्कि मानसिक और आत्मिक रूप से भी स्वस्थ रह सकते हैं.

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पूछे जाने वाले प्रश्न

गीता में भोजन को कैसे वर्गीकृत किया गया है?

गीता भोजन को तीन गुणों में वर्गीकृत करती है: सात्विक, राजसी और तामसिक. हर गुण का भोजन हमारे मन और शरीर को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है.
सात्विक भोजन शुद्ध, ताजा और पौष्टिक होता है, जो मन को शांत और शरीर को स्वस्थ रखता है.
राजसी भोजन उत्तेजक और तीखा होता है, जो अल्पकालीन ऊर्जा तो देता है लेकिन मन को अशांत कर सकता है.
तामसिक भोजन बासी और अशुद्ध होता है, जो मन को सुस्त और शरीर को कमजोर बना सकता है.

 श्रीमद्भगवद्गीता में भोजन के समय किन बातों का ध्यान रखने के लिए कहा गया है?

श्रीमद्भगवद्गीता केवल भोजन के प्रकारों का ही वर्णन नहीं करती, बल्कि स्वस्थ भोजन आदतों को अपनाने पर भी बल देती है. भोजन के समय मन और वातावरण का भी ध्यान रखना चाहिए. गीता में वर्णित कुछ महत्वपूर्ण भोजन नियम हैं:
शांत और सकारात्मक वातावरण में भोजन करना चाहिए.
जल्दबाजी में न खाकर, भोजन को धीरे-धीरे और अच्छी तरह चबाना चाहिए.
केवल भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए और आवश्यकता से अधिक नहीं खाना चाहिए.

क्या श्रीमद्भगवद्गीता में मांसाहार का सेवन वर्जित है?

गीता सीधे तौर पर मांसाहार का सेवन वर्जित नहीं करती है, लेकिन यह तामसिक भोजन की श्रेणी में आता है. गीता में बताया गया है कि तामसिक भोजन मन को सुस्त और शरीर को बीमार बना सकता है. साथ ही, अकाल मृत्यु का कारण भी बन सकता है. इसलिए, गीता अप्रत्यक्ष रूप से सात्विक भोजन, यानी शाकाहारी भोजन को अपनाने का संकेत देती है.

गीता के अनुसार स्वस्थ भोजन करने से क्या लाभ होते हैं?

गीता के अनुसार, स्वस्थ भोजन करने से न केवल शारीरिक लाभ मिलते हैं बल्कि मानसिक और आत्मिक लाभ भी प्राप्त होते हैं. सात्विक भोजन करने से शरीर स्वस्थ रहता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और मन शांत रहता है. इससे एकाग्रता बढ़ती है और आत्मिक विकास में भी सहायता मिलती है. गीता के उपदेशों का पालन करके हम संपूर्ण जीवन शैली में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं.

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