प्रत्येक हिंदू धर्मावलंबी के लिए शुक्ल प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। शिव – कल्याणकारी, विनाशक और सृजनकर्ता के रूप में पूजनीय हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए कई व्रत और उपाय बताए गए हैं, जिनमें से एक है प्रदोष व्रत। प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने में दो बार रखा जाता है – एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में।
इस लेख में, हम खासतौर पर जुलाई 2024 में पड़ने वाले शुक्ल प्रदोष व्रत पर चर्चा करेंगे। हम इसकी तिथि, पूजा विधि, महत्व, लाभ और कुछ रोचक तथ्यों को जानेंगे।
जुलाई 2024 में शुक्ल प्रदोष व्रत 18 जुलाई, 2024 को पड़ेगा। आइए, इस दिन से जुड़े शुभ मुहूर्तों को देखें:
प्रत्येक व्रत की तरह शुक्ल प्रदोष व्रत की भी एक खास पूजा विधि है। आइए, इस शुभ दिन पर भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विधि-विधान से पूजा का संकल्प लें:
हिंदू धर्म में हर व्रत का कोई ना कोई महत्व होता है। शुक्ल प्रदोष व्रत भी अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए जानें इसके कुछ प्रमुख महत्वों के बारे में:
शुक्ल प्रदोष व्रत से जुड़ी कुछ रोचक बातें भी हैं, जिन्हें जानना आपके लिए काफी दिलचस्प होगा:
पूजा आरंभ करने से पहले गहन शुद्धि करना आवश्यक होता है। इसके लिए आप घर के आसपास गोमूत्र का छिड़काव कर सकते हैं। इसके पश्चात पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और स्वयं भी स्नान कर लें। अब आसन पर बैठकर संकल्प लें। संकल्प का अर्थ है – व्रत को करने का दृढ़ निश्चय। आप निम्न मंत्र का जाप कर सकते हैं:
“ॐ अस्य श्री परमेश्वरस्य प्रसादादिच्छा मया कृतं शुक्ल प्रदोषव्रतं सर्वपापक्षयपूर्वकं सकल शिवार्थाय च सर्वकल्याणाय च करिष्ये।”
अर्थ: हे परमेश्वर! आपकी कृपा से आज मैं शुक्ल प्रदोष का व्रत कर रहा/रही हूं। इस व्रत को करने से मेरे सभी पापों का नाश हो और मुझे भगवान शिव का आशीर्वाद एवं जीवन में सभी प्रकार का कल्याण प्राप्त हो।
मान्यता है कि शुक्ल प्रदोष व्रत कथा का श्रवण करने से व्रत का फल पूर्ण रूप से प्राप्त होता है। आइए, अब इस कथा को जानते हैं:
एक बार सौराष्ट्र नामक देश में एक धर्मपरायण राजा राज्य करता था। राजा शिव भक्त था और हमेशा उनकी आराधना करता था। लेकिन रानी को संतान प्राप्ति का सुख नहीं मिल रहा था। इस दुःख से निजात पाने के लिए राजा ने अपने दरबार के सभी विद्वानों को बुलाया। विद्वानों ने राजा को सलाह दी कि वह शुक्ल प्रदोष व्रत का विधिपूर्वक पालन करें। राजा ने उनकी सलाह मानी और पूरे श्रद्धाभाव से शुक्ल प्रदोष का व्रत रखा। साथ ही उन्होंने भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा भी की। कुछ समय बाद रानी को गर्भधारण हुआ और उसने एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। इस प्रकार राजा और रानी दोनों भगवान शिव के आशीर्वाद से धन्य हो गए।
कथा सुनने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती को भोग लगाएं।
अगले दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद भगवान शिव को जल अर्पित करें और उनसे व्रत पूर्ण करने की अनुमति लें। फिर थोड़ा सा प्रसाद ग्रहण कर के व्रत का पारण करें।
शुक्ल प्रदोष व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और जीवन में सुख-समृद्धि लाने का एक सरल और प्रभावी उपाय है। निष्ठा और श्रद्धाभाव से किया गया यह व्रत आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है। इस लेख में हमने आपको शुक्ल प्रदोष व्रत से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारी प्रदान की है। उम्मीद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा।
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शुक्ल प्रदोष व्रत की विधि निम्नलिखित है:
पूजा की तैयारी: सबसे पहले स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
आवाहन और स्नान: दोनों देवताओं का आवाहन करें और फिर उन्हें गंगाजल से स्नान कराएं।
षोडशोपचार पूजन: भगवान शिव और माता पार्वती को वस्त्र, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह प्रकार की सामग्री अर्पित करें।
मंत्र जप: ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें या शिव चालीसा या रुद्राष्टक का पाठ करें।
कथा वाचन: प्रदोष काल के दौरान शुक्ल प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें।
आरती और प्रार्थना: अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें और मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
शुक्ल प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। इसके कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
भगवान शिव की कृपा प्राप्ति
मनोकामना पूर्ति
पापों का नाश
सुख-समृद्धि प्राप्ति
रोगों से मुक्ति
ग्रहों की अशुभता दूर करना
मानसिक शांति प्राप्ति
जी हां, शुक्ल प्रदोष व्रत में कुछ खाने के नियम हैं। आप व्रत वाले दिन सात्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं, जैसे फल, सब्जियां, दूध दही आदि। व्रत के दौरान मांस, मदिरा और तामसिक भोजन का सेवन वर्जित माना जाता है।
प्रदोष काल का अर्थ है – प्रदोष यानी शाम और काल यानी समय। यह समय सूर्यास्त के बाद और रात होने से पहले का होता है। प्रदोष काल को भगवान शिव का प्रिय समय माना जाता है। इसलिए शुक्ल प्रदोष व्रत में पूजा का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल के दौरान ही होता है।
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