September Ekadashi 2024 : इंदिरा एकादशी व्रत कब है, तिथि,व्रत कथा, महत्व और पूजा विधि
इंदिरा एकादशी हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है और आध्यात्मिक विकास तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए एक शुभ अवसर माना जाता है। इस वर्ष 2024 में इंदिरा एकादशी 27 सितंबर को पड़ रही है। आइए, इस लेख में हम इंदिरा एकादशी की तिथि, महत्व, पूजा विधि, पारण समय और इससे जुड़े लाभों के बारे में विस्तार से जानें।
इंदिरा एकादशी तिथि और मुहूर्त (September Ekadashi Date and Timings)
इंदिरा एकादशी का व्रत रखने के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व होता है. आइए देखें इस वर्ष इंदिरा एकादशी की तिथि और मुहूर्त क्या हैं:
एकादशी तिथि प्रारंभ: 27 सितंबर 2024, शुक्रवार शाम 01:20 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 28 सितंबर 2024, शनिवार दोपहर 02:49 बजे
पारण समय: 29 सितंबर 2024, रविवार सुबह 06:11 बजे से 08:35 बजे तक
इंदिरा एकादशी का महत्व (Significance of Indira Ekadashi)
इंदिरा एकादशी का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. आइए देखें इसके प्रमुख महत्वों को:
पापों से मुक्ति (Liberation from Sins): इंदिरा एकादशी व्रत को पापों से मुक्ति पाने के लिए सबसे कारगर व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को अपने सभी पापों से मुक्ति मिलती है और वह मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
मनोकामना पूर्ति (Fulfilling Desires): इंदिरा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने का एक उत्तम उपाय है। इस व्रत को सच्ची श्रद्धा और भक्तिभाव से करने पर भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोवांछाएं पूर्ण करते हैं।
सुख-समृद्धि की प्राप्ति (Attaining Happiness and Prosperity): इंदिरा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं और समृद्धि आती है।
पितृ दोष शांति (Peace from Ancestral Debts): हिंदू धर्म में पितृ दोष को जीवन में कई तरह की परेशानियों का कारण माना जाता है। इंदिरा एकादशी का व्रत पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत को रखने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
आध्यात्मिक उन्नति (Spiritual Progress): इंदिरा एकादशी का व्रत आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी बहुत लाभदायक माना जाता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को अपने मन को नियंत्रित करने की शक्ति मिलती है और आध्यात्मिक विकास में सहायता मिलती है।
इंदिरा एकादशी पूजा विधि (Method of Worship On Indira Ekadashi)
इंदिरा एकादशी के व्रत को विधि-विधान से करने से ही उसका पूरा फल प्राप्त होता है। आइए जानें इंदिरा एकादशी की पूजा विधि:
एकादशी तिथि का प्रारंभ (Beginning of Ekadashi Tithi): एकादशी तिथि के प्रारंभ में जल्दी उठें और स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थान को साफ-सुथरा कर लें।
पूजा सामग्री (Worship Material): पूजा के लिए निम्न सामग्री एकत्रित कर लें:
दीपक
धूप
नैवेद्य (पंचामृत, फल, मिठाई, आदि)
ताजे फल
फूल
तुलसी की पत्तियां
पान का पत्ता
सुपारी
पूजन विधि (Worship Method):
सबसे पहले भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्नान कराएं। इसके लिए गंगाजल या पंचामृत का प्रयोग कर सकते हैं।
स्नान के बाद भगवान विष्णु को वस्त्र, आभूषण और मुकुट अर्पित करें।
इसके बाद दीप जलाएं और धूप अर्पित करें।
भगवान विष्णु को नैवेद्य का भोग लगाएं।
ताजे फल, फूल, तुलसी की पत्तियां, पान का पत्ता और सुपारी भी भगवान को अर्पित करें।
भगवान विष्णु की आरती करें और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। आप अपनी इच्छानुसार अन्य भगवान विष्णु के मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं।
व्रत पालन (Observing the Fast): पूरे दिन व्रत रखें। आप जल, दूध और फल का सेवन कर सकते हैं। सात्विक भोजन का ही सेवन करें और मांसाहार, अनाज और लहसुन-प्याज जैसी चीजों का सेवन न करें। इस दिन झूठ बोलने, क्रोध करने और किसी भी प्रकार का हिंसा करने से बचें। अपने मन को शुद्ध रखें और भगवान विष्णु का ध्यान करें। उनके नाम का स्मरण करें और भक्तिभाव में लीन रहें। आप चाहें तो इस दिन धार्मिक ग्रंथों का पाठ भी कर सकते हैं।
इंदिरा एकादशी का पारण (Paran of Indira Ekadashi)
पारण का समय (Parayan Time): एकादशी तिथि के बाद अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के प्रारंभ में स्नान करके पूजा करें। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान दें। दान में अनाज, वस्त्र, दक्षिणा आदि का दान किया जा सकता है। ब्राह्मण का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करें। पारण का शुभ मुहूर्त 29 सितंबर 2024, रविवार सुबह 06:11 बजे से 08:35 बजे के बीच है। इस समय के दौरान ही पारण करना शुभ माना जाता है।
इंदिरा एकादशी व्रत के लाभ (Benefits of Indira Ekadashi Vrat)
इंदिरा एकादशी का व्रत रखने से शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों ही तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। आइए देखें इंदिरा एकादशी व्रत के कुछ प्रमुख लाभ:
पापों से मुक्ति (Liberation from Sins): जैसा कि हमने पहले बताया, इंदिरा एकादशी का व्रत पापों से मुक्ति पाने के लिए सबसे कारगर व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को अपने जीवन में किए गए जानी-अंजानी भूलों और पापों से मुक्ति मिलती है।
मनोकामना पूर्ति (Fulfilling Desires): इंदिरा एकादशी का व्रत सच्ची श्रद्धा और भक्तिभाव से करने पर भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
आध्यात्मिक उन्नति (Spiritual Progress): (Continued) इंदिरा एकादशी का व्रत आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी बहुत लाभदायक माना जाता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को अपने मन को नियंत्रित करने की शक्ति मिलती है। व्रत के दौरान सात्विक आहार और शुद्ध विचार मन को शांत रखते हैं, जिससे आध्यात्मिक विकास में सहायता मिलती है।
सुख-समृद्धि की प्राप्ति (Attaining Happiness and Prosperity): इंदिरा एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं और समृद्धि आती है। साथ ही, पारिवारिक कलह क्लेश भी दूर होते हैं और घर में सुख-शांति का वातावरण बनता है।
शारीरिक स्वास्थ्य लाभ (Physical Health Benefits): इंदिरा एकादशी के व्रत में सात्विक आहार ग्रहण करने से शरीर को भी कई लाभ मिलते हैं। व्रत के दौरान शरीर को अनावश्यक भोजन से आराम मिलता है और पाचन तंत्र मजबूत होता है। साथ ही, फलों का सेवन शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति करता है।
पारिवारिक सुख (Family Happiness): इंदिरा एकादशी का व्रत पूरे परिवार के साथ मिलकर रखा जा सकता है। यह व्रत परिवार के सभी सदस्यों को एकजुट होने का अवसर प्रदान करता है। साथ ही, व्रत के दौरान सकारात्मक वातावरण बनता है, जिससे पारिवारिक रिश्ते मजबूत होते हैं और घर में सुख-शांति का वातावरण बनता है।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा (Story of Indira Ekadashi)
इंदिरा एकादशी से जुड़ी एक कथा प्रचलित है, जिसे सुनना व्रत के महत्व को और भी गहरा कर देता है। आइए, इस कथा को जानें:
एक समय राजा इंद्रसेन नामक एक राजा राज्य करता था। वह भगवान शिव का परम भक्त था। राजा इंद्रसेन को कोई संतान नहीं थी, जिससे वह बहुत दुखी रहता था। संतान प्राप्ति की इच्छा से उसने कई यज्ञ और दान किए, लेकिन उसे कोई संतान प्राप्त नहीं हुई।
एक दिन राजा इंद्रसेन नारद मुनि से मिले और अपनी परेशानी बताई। नारद मुनि ने राजा को बताया कि उसकी पिछले जन्म के कर्मों के कारण उसे संतान सुख प्राप्त नहीं हो रहा है। उन्होंने राजा को इंदिरा एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी।
राजा इंद्रसेन ने विधि-विधान से इंदिरा एकादशी का व्रत रखा। व्रत के फलस्वरूप उसे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा इंद्रसेन पुत्र प्राप्ति से बहुत खुश हुआ और उसने नारद मुनि का आभार व्यक्त किया।
इंदिरा एकादशी की कथा हमें यह बताती है कि इस व्रत को रखने से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है बल्कि मनोवांछित फल भी प्राप्त होते हैं।
इंदिरा एकादशी के व्रत में रखने योग्य सावधानियां (Precautions to be Taken During Indira Ekadashi Vrat)
इंदिरा एकादशी का व्रत रखते समय कुछ सावधानियां भी रखना जरूरी होता है। आइए, इन सावधानियों को जानें:
एकादशी तिथि के दिन किसी भी प्रकार का अनाज का सेवन न करें।
व्रत के दौरान मांसाहार, लहसुन-प्याज और तामसिक भोजन का सेवन न करें।
व्रत के दौरान क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या आदि नकारात्मक भावों से दूर रहें।
इंदिरा एकादशी हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस वर्ष 2024 में इंदिरा एकादशी 27 सितंबर, शुक्रवार को पड़ रही है।
इंदिरा एकादशी का व्रत क्यों रखा जाता है?
इंदिरा एकादशी का व्रत कई कारणों से रखा जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु को प्रसन्न करना और उनके आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। इसके अलावा, इस व्रत को रखने से कई लाभ मिलते हैं, जैसे: पापों से मुक्ति मनोवांछित फल की प्राप्ति सुख-समृद्धि में वृद्धि पितृ दोष शांति आध्यात्मिक उन्नति
इंदिरा एकादशी की पूजा विधि क्या है?
इंदिरा एकादशी की पूजा विधि इस प्रकार है: व्रत से एक दिन पहले सात्विक भोजन करें और जल्दी सो जाएं। एकादशी तिथि के प्रारंभ में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को साफ करें और भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। दीप जलाएं, धूप अर्पित करें और भगवान विष्णु को नैवेद्य का भोग लगाएं। ताजे फल, फूल, तुलसी की पत्तियां भगवान को चढ़ाएं। भगवान विष्णु की आरती करें और उनका ध्यान करें। पूरे दिन व्रत रखें और सात्विक आहार ग्रहण करें। अगले दिन पारण करने से पहले ब्राह्मण को भोजन कराएं और दान दें।