हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व माना जाता है। वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं, जिनमें से कुछ का विशेष महत्व होता है। उन्हीं में से एक है वरुथिनी एकादशी। वरुथिनी एकादशी को चैत्र मास (अप्रैल) और कार्तिक मास (अक्टूबर-नवंबर) में दो बार मनाया जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। आइए, इस लेख में हम वरुथिनी एकादशी की तिथि, महत्व, पौराणिक कथा, व्रत विधि और इससे जुड़े लाभों के बारे में विस्तार से जानें।
वरूथिनी एकादशी 03 मई को दोपहर 11 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी और 04 मई को दोपहर 03 बजकर 37 मिनट पर समापन होगा।
वरुथिनी एकादशी को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे पापमोचनी एकादशी, विजया एकादशी और वैष्णवी एकादशी। इन नामों से ही इस व्रत के महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है।
पुराणों के अनुसार, वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। साथ ही, इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
वरुथिनी एकादशी के महत्व को दर्शाने वाली कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आइए, उनमें से दो प्रमुख कथाओं को जानें:
पहली कथा:
पहली कथा महाराजा मांधाता से जुड़ी है। महाराजा मांधाता बहुत ही धर्मात्मा और दानी राजा थे। एक बार जंगल में तपस्या करते समय एक भालू ने उनपर हमला कर दिया। भालू के हमले से घायल होकर राजा मांधाता ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। उसी रात उन्हें स्वप्न में भगवान विष्णु के दर्शन हुए और भगवान विष्णु ने उन्हें वरुथिनी एकादशी का व्रत करने का निर्देश दिया। राजा मांधाता ने विधिपूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु की कृपा से वे अपने शत्रुओं से विजयी हुए। साथ ही, मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति भी हुई।
दूसरी कथा:
दूसरी कथा भगवान विष्णु के वराह अवतार से जुड़ी है। भगवान विष्णु ने पृथ्वी को हिरण्याक्ष नामक राक्षस के चंगुल से मुक्त कराने के लिए वराह का अवतार लिया था। हिरण्याक्ष पृथ्वी को पाताल लोक में ले गया था। भयंकर युद्ध के बाद भगवान विष्णु ने वराह रूप में हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को अपने दांतों पर उठाकर वापस लाए। माना जाता है कि यह युद्ध कार्तिक मास की वरुथिनी एकादशी के दिन हुआ था। इसलिए इस एकादशी को विजया एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
वरुथिनी एकादशी का व्रत विधि अपेक्षाकृत सरल है। आप निम्नलिखित विधि का पालन कर सकते हैं:
ध्यान दें: यह एक सामान्य व्रत विधि है। आप अपने क्षेत्र के विद्वान पंडित या ज्योतिषी से सलाह लेकर विधि में थोड़ा बहुत बदलाव कर सकते हैं।
वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। आइए, उनमें से कुछ प्रमुख लाभों को जानें:
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इस व्रत को करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख लाभ हैं:
मोक्ष की प्राप्ति: पुराणों के अनुसार, इस व्रत को करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
पापों का नाश: इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है।
भगवान विष्णु की कृपा: इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
मन की शांति: इस व्रत को करने से मन को शांति और संतोष की प्राप्ति होती है।
जी हां, इस व्रत को करने की एक विधि है। आप निम्नलिखित विधि का पालन कर सकते हैं:
व्रत से एक दिन पहले (दशमी तिथि): सात्विक भोजन करें और शाम को हल्का भोजन ग्रहण करने के बाद रात्रि भोजन का त्याग करें।
एकादशी तिथि: सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहनें और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और उपवास रखें।
द्वादशी तिथि: सूर्योदय के बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
ध्यान दें कि यह एक सामान्य विधि है। आप अपने क्षेत्र के विद्वान पंडित या ज्योतिषी से सलाह लेकर विधि में थोड़ा बहुत बदलाव कर सकते हैं।
यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने राक्षसों पर विजय प्राप्त की थी। साथ ही, एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने स्वयं इस व्रत का महत्व बताया था। इसलिए इस व्रत का संबंध सीधे तौर पर भगवान विष्णु से है।
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