ज्येष्ठ पूर्णिमा (वट पूर्णिमा), हिंदू धर्म के पवित्र पर्वों में से एक है, जिसे ज्येष्ठ माह (जून-जुलाई) की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2024 में यह पर्व 22 जून, शनिवार को धूमधाम से मनाया जाएगा। ज्येष्ठ पूर्णिमा को कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे वट पूर्णिमा और देवशयनी एकादशी। यह दिन आध्यात्मिक चेतना, सौभाग्य की प्राप्ति, और पारिवारिक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। आइए, इस लेख में हम ज्येष्ठ पूर्णिमा 2024 के तिथि, लाभ, पूजा विधि, महत्व, और कुछ अन्य रोचक जानकारियों के बारे में विस्तार से जानें।
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2024: तिथि और समय
ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा की तिथि और समय को जानना इस पर्व को मनाने के लिए आवश्यक है।
- ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 19 जून 2024, रात 11:52 बजे
- ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि समाप्त: 20 जून 2024, रात 10:16 बजे
इस दौरान पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा के लाभ
ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट पूर्णिमा का व्रत रखने और पूजा-अर्चना करने के अनेक लाभ बताए गए हैं। आइए, इन लाभों के बारे में विस्तार से जानें:
- पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- मनोकामनाओं की पूर्ति: ज्येष्ठ पूर्णिमा पर सच्चे मन से की गई पूजा और दान से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।
- सुख-समृद्धि का आशीर्वाद: इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद मिलता है, जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है।
- संतान प्राप्ति का वरदान: निःसंतान दंपत्तियों के लिए ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखना और विधि-विधान से पूजा करना संतान प्राप्ति का वरदान माना जाता है।
- पारिवारिक कल्याण: ज्येष्ठ पूर्णिमा पर किए गए अनुष्ठान और दान से पारिवारिक कलह दूर होता है और परिवार में सुख-शांति का वास होता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा की पूजा विधि
ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट पूर्णिमा के पावन अवसर पर शुभ मुहूर्त में पूजा-अर्चना करने से विशेष लाभ मिलते हैं। आइए, जानते हैं ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा की सरल पूजा विधि:
- पूजा की तैयारी: ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल से शुद्धीकरण करें।
- मंडप निर्माण: एक चौकी पर लाल रंग का आसन बिछाएं और उस पर कलश स्थापित करें। कलश में शुद्ध जल, आम के पत्ते, और एक नारियल रखें।
- आवाहन और स्नान: भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी, और भगवान शिव का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर) से आवाहन करें। इसके बाद उन्हें स्नान कराएं।
- वट वृक्ष की पूजा: ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमाके दिन वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। किसी निकटवर्ती वट वृक्ष के पास जाएं और उसकी जड़ों में जल चढ़ाएं। फिर दूध, दही, शहद, घी, और चीनी का मिश्रण चढ़ाएं। वट वृक्ष पर मौली (पवित्र धागा) बांधें और 108 बार उसकी परिक्रमा करें। वट वृक्ष की कथा सुनें और आरती करें। 6. ब्राह्मण भोजन और दान: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान-पुण्य करना अत्यंत शुभ माना जाता है। गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
- उपवास: ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा पर व्रत रखने का विधान है। सूर्योदय से पहले भोजन ग्रहण कर लें और फिर रात को चंद्र दर्शन के बाद ही भोजन करें।
- चंद्रमा का दर्शन: ज्येष्ठ पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा का दर्शन करना शुभ माना जाता है। छत पर जाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें और उससे आशीर्वाद प्राप्त करें।
ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा का महत्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। आइए, जानते हैं इसके कुछ प्रमुख कारणों को:
- भगवान विष्णु का शयनकाल: ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं और चार महीने तक योग निद्रा में रहते हैं। इस दौरान किसी भी तरह का मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है।
- वट सावित्री व्रत कथा: ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा के दिन वट सावित्री व्रत कथा का पाठ किया जाता है। यह कथा सती सावित्री के पति को यमराज के च clutches से वापस लाने की अटूट श्रद्धा और पतिव्रता धर्म का उदाहरण देती है।
- पितरों का आशीर्वाद: ज्येष्ठ पूर्णिमावट पूर्णिमा पर स्नान, दान, और पूजा करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है।
- आध्यात्मिक चेतना का जागरण: ज्येष्ठ पूर्णिमा वट पूर्णिमा का व्रत रखने और पूजा-अर्चना करने से आध्यात्मिक चेतना का जागरण होता है और मन को शांति मिलती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा से जुड़ी अन्य रोचक बातें
ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट पूर्णिमा से जुड़ी कुछ रोचक बातें भी हैं, जिन्हें जानना आपके लिए लाभदायक हो सकता है:
- ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन घर में गंगाजल छिड़कना शुभ होता है। इससे घर का वातावरण शुद्ध होता है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
- ज्येष्ठ पूर्णिमा पर तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व है। तुलसी को भगवान विष्णु अति प्रिय है, इसलिए इस दिन तुलसी की विधिवत पूजा करनी चाहिए।
- ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मीठे पकवान बनाकर उनका भोग लगाना और प्रसाद के रूप में ग्रहण करना शुभ माना जाता है।
- ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन खरीदारी करना भी शुभ होता है। आप इस दिन अपने लिए या घर के लिए कोई नया सामान खरीद सकते हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य
धार्मिक महत्व के साथ-साथ ज्येष्ठ पूर्णिमा से जुड़े कुछ वैज्ञानिक तथ्य भी हैं।
- ज्येष्ठ महीने में सूर्य की किरणें पृथ्वी पर सीधे पड़ती हैं, जिससे गर्मी बढ़ती है। इस दौरान व्रत रखने और सात्विक भोजन करने से शरीर स्वस्थ रहता है और पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है।
- ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी से सबसे दूर होता है। इस दौरान चंद्रमा का प्रकाश पृथ्वी पर कम मात्रा में पहुंचता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कमजोर चंद्रमा के प्रकाश का पृथ्वी के ज्वार-भाटे पर कम प्रभाव पड़ता है।
- वट वृक्ष की पूजा करने का भी वैज्ञानिक महत्व है। वट वृक्ष वातावरण को शुद्ध करता है और ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाता है। ज्येष्ठ माह में गर्मी अधिक होती है, ऐसे में वट वृक्ष की पूजा करने से वातावरण में ठंडक बनी रहती है।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि उपरोक्त वैज्ञानिक तथ्य धार्मिक मान्यताओं को प्रमाणित करने का दावा नहीं करते हैं, बल्कि ज्येष्ठ पूर्णिमा से जुड़े कुछ वैज्ञानिक पहलुओं को उजागर करते हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा: क्षेत्रीय परंपराएं
ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट पूर्णिमा विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाया जाता है। आइए, भारत के कुछ प्रमुख क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा से जुड़ी परंपराओं को जानें:
- उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। लोग गंगा नदी में स्नान कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
- गुजरात: गुजरात में ज्येष्ठ पूर्णिमा को “आषाढी बीज” के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग भगवान शिव की आराधना करते हैं और नृत्य उत्सव मनाते हैं।
- कर्नाटक: कर्नाटक में ज्येष्ठ पूर्णिमा को “कदली पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग केले के पेड़ की पूजा करते हैं और मीठे पकवान बनाकर उनका भोग लगाते हैं।
- तमिलनाडु: तमिलनाडु में ज्येष्ठ पूर्णिमा को “आषाढ़ी” के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग मंदिरों में जाकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
यह कुछ उदाहरण हैं। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा को अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
उपसंहार
ज्येष्ठ पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह आध्यात्मिक चेतना, सौभाग्य, पारिवारिक कल्याण, और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। इस पर्व को मनाने से शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से लाभ प्राप्त होते हैं। उम्मीद है, इस लेख को पढ़कर आप ज्येष्ठ पूर्णिमा के महत्व को समझ गए होंगे और इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाएंगे।
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पूछे जाने वाले प्रश्न
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2024 किस दिन है?
ज्येष्ठ पूर्णिमा 2024 20 जून, शनिवार को मनाया जाएगा। ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 19 जून की रात 11:52 बजे से प्रारंभ होकर 20 जून की रात 10:16 बजे तक रहेगी।
ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा क्यों कहा जाता है?
ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन वट वृक्ष की विशेष रूप से पूजा की जाती है। वट वृक्ष को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष की पूजा करने से सुख-समृद्धि, संतान प्राप्ति और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट पूर्णिमा का महत्व क्या है?
ज्येष्ठ पूर्णिमा का हिंदू धर्म में कई तरह का महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं और चार महीने तक योग निद्रा में रहते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा पर व्रत रखने और पूजा-अर्चना करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है, और मनोवांछित फल मिलते हैं। साथ ही, इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने से पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी मिलता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा या वट पूर्णिमा से जुड़ी कौन सी क्षेत्रीय परंपराएं हैं?
ज्येष्ठ पूर्णिमा भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में गंगा स्नान का विशेष महत्व है। गुजरात में इसे “आषाढी बीज” के नाम से जाना जाता है, जहां भगवान शिव की आराधना की जाती है। कर्नाटक में “कदली पूर्णिमा” के रूप में केले के पेड़ की पूजा की जाती है। तमिलनाडु में इसे “आषाढ़ी” के नाम से जाना जाता है और मंदिरों में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। ये कुछ उदाहरण हैं, जो दर्शाते हैं कि ज्येष्ठ पूर्णिमा पूरे भारत में किस तरह मनाया जाता है।