Jyeshth Purnima 2024 :ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत 2024 कब है, तिथि, लाभ, पूजा विधि और पौराणिक कथा
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत हिंदू धर्म के प्रमुख व्रतों में से एक है। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। वर्ष 2024 में ज्येष्ठ पूर्णिमा 22 जून को पड़ रही है। इस पवित्र दिन को मनाने का विशेष महत्व है। आइए, इस लेख में हम ज्येष्ठ पूर्णिमा की तिथि, लाभ, पूजा विधि, पौराणिक कथा और इसके धार्मिक व सामाजिक महत्व को विस्तार से समझें।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत 2024 की तिथि और शुभ मुहूर्त
व्रत तिथि: 22 जून 2024
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 21 जून 2024, शाम 07:33 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 22 जून 2024, शाम 06:35 बजे
ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत सूर्योदय से पहले प्रारंभ हो जाता है और अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाता है। उपरोक्त तिथियों को ध्यान में रखते हुए आप व्रत का संकल्प लें और पूजा-पाठ करें।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत के लाभ
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत को रखने से शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों ही तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। आइए, जानें ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत रखने के कुछ प्रमुख लाभों के बारे में:
मनोकामना पूर्ति: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और सच्चे मन से की गई मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पापों का नाश: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन व्रत रखने और पूजा-पाठ करने से व्यक्ति के पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है और शुभ कर्म करने की प्रेरणा मिलती है।
सुख-समृद्धि: ज्येष्ठ पूर्णिमा पर विधि-विधान से पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। माता लक्ष्मी की कृपा से धन-धान्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सफलता मिलती है।
मोक्ष की प्राप्ति: ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत नियमित रूप से करने से मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। भगवान विष्णु की भक्ति से व्यक्ति को आत्मिक शांति मिलती है और मोक्ष प्राप्ति की इच्छा बलवती होती है।
विवाह में बाधाओं का निवारण: विवाह में देरी हो रही हो या विवाह से जुड़ी कोई समस्या हो तो ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखना लाभदायक माना जाता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
संतान प्राप्ति: संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपत्ति ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। उनकी कृपा से संतान सुख प्राप्त होता है।
ग्रहों की अशुभ दशाओं का शमन: ज्योतिष के अनुसार, ज्येष्ठ माह में कुछ ग्रहों की अशुभ दशाएं हो सकती हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखने और दान-पुण्य करने से ग्रहों की अशुभ दशाओं का प्रभाव कम होता है और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
रोगों से मुक्ति: ज्येष्ठ पूर्णिमा पर व्रत रखने और सात्विक भोजन करने से शरीर शुद्ध होता है और रोगों से मुक्ति मिलती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत की विधि-विधानपूर्वक पूजा
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत के पवित्र दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। आइए, जानते हैं ज्येष्ठ पूर्णिमा की पूजा विधि के बारे में:
पूजन सामग्री:
गंगाजल
पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर)
फल, फूल और मिठाई
धूप, दीप और अगरबत्ती
तुलसी की पत्तियां
पीला वस्त्र
चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए जल का पात्र
पूजा विधि:
प्रातः स्नान: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थान की साफ-सफाई: पूजा करने से पहले अपने पूजा स्थान को साफ-सुथरे से साफ करें और चौकी पर पीले रंग का आसन बिछाएं।
संकल्प लें: आसन पर बैठकर भगवान गणेश, भगवान सूर्य और माता पार्वती का ध्यान करें और ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखने का संकल्प लें।
मूर्ति/चित्र स्थापना: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें और उनका गंगाजल से अभिषेक करें।
आसन: भगवान विष्णु को पीले वस्त्र और माता लक्ष्मी को लाल वस्त्र अर्पित करें।
आभूषण: भगवान विष्णु को तुलसी की माला और माता लक्ष्मी को कमल का फूल अर्पित करें।
पंचामृत स्नान: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को पंचामृत से स्नान कराएं।
फल, फूल और मिठाई का भोग: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को फल, फूल और मिठाई का भोग लगाएं।
मंत्र जाप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “ॐ श्रीं महालक्ष्मीये नमः” मंत्रों का जाप करें।
पूजा का समापन: धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं और पूजा का विधिवत समापन करें।
दिन भर व्रत: पूरे दिन उपवास रखें और भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान करते रहें।
चंद्रमा को अर्घ्य: शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें और आरती करें। आप चाहें तो चंद्रमा को दूध से भी अर्घ्य दे सकते हैं।
रात्रि भजन-कीर्तन: रात में भजन-कीर्तन करें और ज्येष्ठ पूर्णिमा से जुड़ी कथा सुनें।
व्रत का पारण: अगले दिन सुबह स्नान करके ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत पारण करें। पारण से पहले गरीबों को दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत की पौराणिक कथा
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। इनमें से एक प्रमुख कथा भगवान विष्णु और शंखासुर नामक राक्षस के युद्ध से जुड़ी है।
कथा के अनुसार, शंखासुर नामक राक्षस बहुत बलशाली था। उसने देवताओं को पराजित कर उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा का वचन दिया और ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन शंखासुर से युद्ध किया। यह युद्ध बहुत भयंकर था। अंततः भगवान विष्णु ने शंखासुर का वध कर देवताओं को पुनः स्वर्ग का
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत: सामाजिक और पारिवारिक महत्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक रूप से भी है। आइए, जानते हैं ज्येष्ठ पूर्णिमा के सामाजिक और पारिवारिक महत्व के बारे में:
आत्म-संयम और त्याग की शिक्षा: ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखने से व्यक्ति में आत्म-संयम की भावना विकसित होती है। व्रत के दौरान उपवास करने से व्यक्ति इंद्रियों को नियंत्रित करना सीखता है। साथ ही, दान-पुण्य करने से त्याग की भावना भी जाग्रत होती है।
पारिवारिक सुख-समृद्धि: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन पूरा परिवार मिल-जुलकर पूजा-पाठ करता है और भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करता है। इससे परिवार में एकता और प्रेम का भाव मजबूत होता है। साथ ही, ज्येष्ठ पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
पारंपरिक वेशभूषा और भोजन: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन कई स्थानों पर पारंपरिक वेशभूषा धारण करने और पारंपरिक व्यंजनों का भोग लगाने की परंपरा है। इससे न केवल संस्कृति का संरक्षण होता है, बल्कि विभिन्न समुदायों के बीच सामाजिक मेलजोल भी बढ़ता है।
पर्यावरण संरक्षण: ज्येष्ठ पूर्णिमा के कुछ क्षेत्रों में पेड़-पौधों की पूजा करने और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लेने की परंपरा है। यह पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में सहायक होता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत के साथ ही कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य भी जुड़े हुए हैं, जिनके बारे में जानना आवश्यक है:
वट सावित्री व्रत: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन कुछ क्षेत्रों में वट सावित्री व्रत भी मनाया जाता है। इस व्रत को खासकर विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं। इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रतका वैज्ञानिक महत्व: ज्येष्ठ माह गर्मी का प्रचंड समय होता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन उपवास रखने से शरीर का पाचन तंत्र साफ होता है और गर्मी के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रतकी क्षेत्रीय भिन्नताएं: ज्येष्ठ पूर्णिमा को पूरे भारत में अलग-अलग नामों और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे ‘वाट पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है।
उपसंहार
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रतआध्यात्मिकता और कल्याण का पर्व है। इस पवित्र दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करने से मनुष्य को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखने से न केवल व्यक्तिगत जीवन में सुख-समृद्धि आती है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश मिलता है।
आप ज्येष्ठ पूर्णिमा की विधि-विधान से पूजा करके और उपरोक्त जानकारी को ध्यान में रखते हुए इस पर्व को मना सकते हैं। ज्येष्ठ पूर्णिमा का पर्व आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए, यही कामना है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कई कारणों से रखा जाता है। यह व्रत भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही तरह के लाभ प्रदान करता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के प्रमुख लाभों में शामिल हैं – मनोकामना पूर्ति, पापों का नाश, सुख-समृद्धि की प्राप्ति, मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होना, विवाह में आ रही बाधाओं का दूर होना, संतान सुख की प्राप्ति, ग्रहों की अशुभ दशाओं का शमन और रोगों से मुक्ति। इसके अलावा, ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत आत्म-संयम और त्याग की भावना को बढ़ावा देता है। पूरे परिवार के साथ मिलकर पूजा करने से पारिवारिक सुख-समृद्धि आती है और सामाजिक सद्भाव भी बढ़ता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि क्या है?
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा की जाती है। पूजा करने से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थान को साफ करें। इसके बाद आसन पर बैठकर संकल्प लें। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति/चित्र स्थापित करें और उनका गंगाजल से अभिषेक करें। फिर उन्हें पीले और लाल वस्त्र, तुलसी की माला और कमल का फूल अर्पित करें। पंचामृत से स्नान कराएं और फल, फूल और मिठाई का भोग लगाएं। “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “ॐ श्रीं महालक्ष्मीये नमः” मंत्रों का जाप करें। धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं। पूरे दिन उपवास रखें, शाम को चंद्रमा को अर्घ्य दें और रात्रि में भजन-कीर्तन करें। अगले दिन सुबह स्नान करके व्रत का पारण करें।
ज्येष्ठ पूर्णिमा से जुड़ी कौन सी पौराणिक कथा प्रचलित है?
ज्येष्ठ पूर्णिमा से जुड़ी एक प्रमुख कथा भगवान विष्णु और शंखासुर नामक राक्षस के युद्ध से जुड़ी है। कथा के अनुसार, शंखासुर नामक राक्षस बहुत बलशाली था। उसने देवताओं को पराजित कर उन्हें स्वर्ग से निकाल दिया था। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने देवताओं की रक्षा का वचन दिया और ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन शंखासुर से युद्ध किया। यह युद्ध बहुत भयंकर था। अंततः भगवान विष्णु ने शंखासुर का वध कर देवताओं को पुनः स्वर्ग का राज्य दिलाया।