निर्जला एकादशी, हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। यह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ता है और भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस वर्ष 2024 में, निर्जला एकादशी 18 जून, मंगलवार को पड़ेगी। आइए, इस लेख में हम निर्जला एकादशी के महत्व, तिथियों, क्या करें और क्या न करें, पूजा विधि और अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों का गहन अध्ययन करें।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी को सभी एकादशियों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में लीन हो जाते हैं। जो भक्त इस पवित्र दिन व्रत रखते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। निर्जला एकादशी व्रत के निम्नलिखित महत्व हैं:
- पापों का नाश: निर्जला एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- मनोकामनाओं की पूर्ति: यह व्रत मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए भी किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सच्ची श्रद्धा से किया गया यह व्रत भक्तों की मनोकामनाओं को अवश्य पूरा करता है।
- आध्यात्मिक विकास: निर्जला एकादशी का व्रत आत्मसंयम और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति में धैर्य और संतोष का भाव विकसित होता है।
- पुण्य की प्राप्ति: निर्जला एकादशी के दिन दान-पुण्य और ब्राह्मण भोज का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन किए गए दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी 2024: तिथियां
निर्जला एकादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण तिथियां इस प्रकार हैं:
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 17 जून 2024, सुबह 4 बजकर 43 मिनट
- एकादशी तिथि समाप्त: 18 जून 2024, सुबह 6 बजकर 24 मिनट
क्या करें
निर्जला एकादशी के पवित्र दिन कुछ विशेष कार्यों को करने का विधान है, जिनका पालन करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। आइए, उन कार्यों को विस्तार से जानें:
- प्रातः स्नान और पूजा-अर्चना: निर्जला एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, घर के मंदिर की सफाई कर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा-अर्चना करें।
- अभिषेक और भोग: भगवान विष्णु का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण) या गंगाजल से अभिषेक करें। इसके बाद, उन्हें तुलसी के पत्ते, फल, फूल और मिठाई का भोग अर्पित करें।
- मंत्र जाप और आरती: भगवान विष्णु के पवित्र मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें। इसके बाद, धूप-दीप जलाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती उतारें।
- दान-पुण्य: निर्जला एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र या धन
- ब्राह्मण भोज: निर्जला एकादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने का भी विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- कथा वाचन: निर्जला एकादशी की व्रत कथा सुनना या पढ़ना बहुत शुभ माना जाता है। इससे व्रत के महत्व और फल की प्राप्ति के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।
- निर् जल रहना: निर्जला एकादशी का नाम ही इस बात का प्रतीक है कि इस दिन जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। यही इस व्रत की सबसे कठिन परीक्षा मानी जाती है।
- आचरण और संयम: निर्जला एकादशी के दिन न सिर्फ जल का त्याग किया जाता है, बल्कि मन, वाणी और शरीर से भी पवित्र रहना चाहिए। इस दिन किसी का अपमान न करें, क्रोध न करें और झूठ न बोलें। सत्यनिष्ठा और सदाचार का पालन करें।
क्या न करें
एकादशी के व्रत को विधि-विधान से पूर्ण करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। आइए, जानें कि इस पवित्र दिन किन चीजों का त्याग करना चाहिए:
- जल ग्रहण: जैसा कि नाम से स्पष्ट है, निर्जला एकादशी के दिन जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। आप थोड़ा गीला मुंह कर सकते हैं, लेकिन पानी पीना वर्जित है।
- अन्न ग्रहण: इस दिन किसी भी प्रकार का अन्न, फल, सब्जी या नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
- मसाले और सुपारी: निर्जला एकादशी के व्रत में किसी भी प्रकार के मसालों और सुपारी का सेवन वर्जित है। सात्विक भोजन का ही सेवन करें।
- शारीरिक सुख: इस दिन दांपत्य सुख का त्याग करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करें और मन को पवित्र रखें।
- तामसिक पदार्थ: निर्जला एकादशी के दिन मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज और अन्य तामसिक पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। सात्विक आहार का ही सेवन करें।
- क्रोध और लोभ: निर्जला एकादशी के दिन क्रोध, लोभ, मोह, मद और ईर्ष्या जैसे भावों का त्याग करना चाहिए। मन को शांत रखें और सकारात्मक विचारों को अपनाएं।
पूजा विधि
निर्जला एकादशी की पूजा विधि सरल है, लेकिन इसे श्रद्धा और भक्तिभाव से करना जरूरी है। आइए, विधि-विधान से पूजा करने का तरीका जानें:
- पूजा की तैयारी: निर्जला एकादशी से एक दिन पहले ही व्रत का संकल्प लें। पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे चौकी, आसन, दीपक, अगरबत्ती, गंगाजल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण), तुलसी पत्र, फल, फूल और मिठाई आदि जुटा लें।
- स्नान और शुद्धिकरण: व्रत वाले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। स्वच्छ और धुले हुए वस्त्र धारण करें। इसके बाद, पूजा स्थल की सफाई करें और आसन बिछाकर उस पर बैठ जाएं।
- आवाहन और आसन: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान करें और उनका आवाहन करें। इसके बाद, उन्हें आसन अर्पित करें।
- षोडशोपचार पूजन : धूप, दीप, तुलसी पत्र, फल, फूल और मिठाई का भोग अर्पित करें। इसके बाद, वस्त्र और दक्षिणा अर्पित करें। अंत में, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।
- मंत्र जाप: निर्जला एकादशी के व्रत में भगवान विष्णु के पवित्र मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जप करना बहुत शुभ माना जाता है। आप अपनी श्रद्धा अनुसार जप की संख्या तय कर सकते हैं।
- कथा वाचन: निर्जला एकादशी की व्रत कथा का वाचन या श्रवण करना व्रत को पूर्ण करने का महत्वपूर्ण अंग है। इससे व्रत के महत्व और फलों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।
- पारण: निर्जला एकादशी का व्रत पारण के बिना अधूरा माना जाता है। अगले दिन पारण करने का शुभ मुहूर्त होता है। ज्योतिषियों के अनुसार निर्धारित पारण समय में ही व्रत का पारण करना चाहिए। पारण से पहले भगवान विष्णु का पूजन करें और उन्हें जल, फल और मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद, थोड़ा जल ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
व्रत रखते समय सावधानियां
निर्जला एकादशी का व्रत काफी कठिन माना जाता है, खासकर जल ग्रहण न करने के कारण। व्रत रखने से पहले अपनी शारीरिक क्षमता का आकलन जरूरी है। आइए, जानें किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए:
- जल का सेवन: यदि आप व्रत के दौरान असहनीय स्थिति में हैं और शरीर में पानी की कमी महसूस हो रही है, तो आप थोड़ा गीला कपड़ा मुंह पर लगा सकते हैं या थोड़ी मात्रा में दूध या फलों का रस ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन इस संबंध में व्रत रखने से पहले ही किसी विद्वान से सलाह लें।
- आराम करना: निर्जला एकादशी के दिन शारीरिक श्रम कम से कम करें। अधिक थकने से बचें और पर्याप्त आराम करें।
- पौष्टिक आहार: व्रत से एक दिन पहले और बाद में हल्का और पौष्टिक आहार लें। इससे शरीर में ऊर्जा का संचार बना रहेगा और आप व्रत को आसानी से पूरा कर पाएंगे।
निर्जला एकादशी व्रत की कथा
कथा के अनुसार, राजा इन्द्रद्युम्न नामक एक चक्रवर्ती सम्राट हुआ करते थे। उनके राज्य में एक बार भयंकर सूखा पड़ा। भुखमरी और अकाल से राज्य की जनता त्राहि-त्राहि करने लगी। राजा ने अपने सारे जलाशयों को भरवाने का प्रयास किया, लेकिन वर्षा न होने से सब व्यर्थ हो गया। तब राजा इन्द्रद्युम्न अपने राज्य के सभी विद्वानों और ब्राह्मणों के पास गए और उनसे उपाय पूछा। विद्वानों ने बताया कि यह सब ग्रहों की दशा के कारण हो रहा है और इससे छुटकारा पाने के लिए निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए।
राजा इन्द्रद्युम्न ने पूरे राज्य में निर्जला एकादशी का व्रत रखने का आदेश दिया। राजा स्वयं भी पूरे विधि-विधान से निर्जला एकादशी का व्रत रखा। व्रत पूरा होने के बाद अगले दिन पारण किया गया। पारण के बाद ही आसमान में काले बादल छाए और भारी वर्षा हुई। सूखे से त्रस्त राज्य में हर तरफ खुशी का माहौल छा गया। इस प्रकार निर्जला एकादशी के व्रत से राजा इन्द्रद्युम्न को भयंकर सूखे से मुक्ति मिली और राज्य में फिर से खुशहाली लौट आई।
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पूछे जाने वाले प्रश्न
निर्जला एकादशी का क्या महत्व है?
निर्जला एकादशी को सभी एकादशियों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में लीन हो जाते हैं। जो भक्त इस पवित्र दिन व्रत रखते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
निर्जला एकादशी 2024 में कब है?
वर्ष 2024 में निर्जला एकादशी 18 जून, मंगलवार को पड़ेगी। एकादशी तिथि 17 जून 2024, सुबह 4 बजकर 43 मिनट से प्रारंभ होकर 18 जून 2024, सुबह 6 बजकर 24 मिनट पर समाप्त होगी। पारण का शुभ मुहूर्त 19 जून 2024, सुबह 5 बजकर 23 मिनट से 8 बजकर 41 मिनट (लगभग 2 घंटे 47 मिनट) के बीच बताया गया है।
निर्जला एकादशी का व्रत रखने से पहले क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
निर्जला एकादशी का व्रत काफी कठिन माना जाता है, खासकर जल ग्रहण न करने के कारण। व्रत रखने से पहले अपनी शारीरिक क्षमता का आकलन जरूरी है। आइए, जानें किन सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए:
स्वास्थ्य की स्थिति: गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं, बच्चों, बुजुर्गों और किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित व्यक्तियों को निर्जला एकादशी का व्रत रखने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
जल का सेवन: यदि आप व्रत के दौरान असहनीय स्थिति में हैं और शरीर में पानी की कमी महसूस हो रही है, तो आप थोड़ा गीला कपड़ा मुंह पर लगा सकते हैं या थोड़ी मात्रा में दूध या फलों का रस ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन इस संबंध में व्रत रखने से पहले ही किसी विद्वान से सलाह लें।
आराम करना: निर्जला एकादशी के दिन शारीरिक श्रम कम से कम करें। अधिक थकने से बचें और पर्याप्त आराम करें।
पौष्टिक आहार: व्रत से एक दिन पहले और बाद में हल्का और पौष्टिक आहार लें। इससे शरीर में ऊर्जा का संचार बना रहेगा और आप व्रत को आसानी से पूरा कर पाएंगे।