नवरात्रि के नौ पवित्र दिनों में से प्रत्येक दिन एक अलग देवी को समर्पित होता है। सातवां दिन माँ कालरात्रि (Maa Kalaratri) का होता है, जो शक्ति और शौर्य की प्रतीक हैं। उनका रूप भले ही भयानक हो, लेकिन वे अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उन्हें बुराईयों से बचाती हैं। आइए, इस लेख में हम जानें कि कैसे माँ कालरात्रि की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में सफलता और शांति पा सकते हैं।
माँ कालरात्रि का वर्णीन स्वरूप हमें उनकी दिव्य शक्तियों का परिचय देता है। वे काले रंग की घोड़े पर सवार हैं, जो शक्ति और गति का प्रतीक है। उनके चार हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ में वे खड्ग (Talwar) धारण करती हैं, जो उनके अजेय शौर्य को दर्शाता है। दूसरे हाथ में त्रिशूल (Trishul) है, जो अशुभ शक्तियों का नाश करने का प्रतीक है। तीसरे हाथ में वे अभय मुद्रा (Abhaya Mudra) दिखाती हैं, जो भक्तों को भयमुक्त करने का आशीर्वाद है। चौथे हाथ में वरद मुद्रा (Varada Mudra) है, जो भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने का संकेत देती है। उनके गले में मुंडों की माला है, जो अहंकार पर विजय का प्रतीक है। उनके शरीर से अंधकार की किरणें निकलती हैं, जो अज्ञान को दूर करने का संदेश देती हैं। उनके आसपास भूत-प्रेत मंडराते रहते हैं, जो यह दर्शाता है कि माँ कालरात्रि इन नकारात्मक शक्तियों पर भी नियंत्रण रखती हैं।
माँ कालरात्रि की उपासना अनेक प्रकार के कल्याणकारी फलों को प्रदान करती है। आइए, उनके कुछ प्रमुख महत्वों को जानें:
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की विधि-विधान से पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। आइए, जानते हैं पूजा की सरल विधि:
जाप के बाद माँ कालरात्रि की आरती गाएं। आप किसी भी आरती का पाठ कर सकते हैं।
माँ कालरात्रि की कृपा प्राप्त करने के लिए उपरोक्त पूजा विधि के अलावा आप कुछ अन्य उपाय भी कर सकते हैं:
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा के साथ ही उनकी कथा सुनने का भी विशेष महत्व है। यह कथा हमें उनकी शक्ति और दयालुता का बोध कराती है। आइए, जानते हैं माँ कालरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा:
एक समय दैत्यों का राजा रक्तबीज नामक राक्षस देवताओं और मनुष्यों के लिए बहुत बड़ा संकट बन गया था। रक्तबीज का वध करना असंभव था। युद्ध के दौरान जब उसका रक्त जमीन पर गिरता था, तो उससे एक नया राक्षस पैदा हो जाता था। इस प्रकार रक्तबीज की सेना लगातार बढ़ती जा रही थी। देवता भी इस राक्षस से निराश हो चुके थे। तब सभी देवताओं ने मिलकर आदिशक्ति महामाया दुर्गा की स्तुति की। उनकी प्रार्थना सुनकर माँ दुर्गा प्रकट हुईं। देवताओं ने माँ दुर्गा से रक्तबीज के वध का उपाय बताया।
माँ दुर्गा युद्धस्थल पर पहुंचीं और रक्तबीज से युद्ध करने लगीं। जैसे ही रक्तबीज का रक्त जमीन पर गिरता, माँ कालरात्रि प्रकट होकर उस रक्त को पी लेतीं। इस प्रकार रक्तबीज से पैदा होने वाले नए राक्षस का जन्म ही नहीं हो पाता था। अंततः रक्तबीज कमजोर पड़ गया और माँ दुर्गा ने उसका वध कर दिया। इस प्रकार माँ कालरात्रि ने देवी दुर्गा को रक्तबीज का नाश करने में सहायता की और देवलोक की रक्षा की।
यह कथा हमें यह संदेश देती है कि माँ कालरात्रि भले ही भयानक रूप वाली हों, लेकिन वे अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और बुराईयों का नाश करती हैं।
नवरात्रि के प्रत्येक दिन एक अलग ग्रह का भी महत्व होता है। सातवां दिन शनि ग्रह को समर्पित होता है। ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह को कर्मफल दाता माना जाता है। माँ कालरात्रि की उपासना शनि ग्रह के दुष्प्रभावों को कम करने में सहायक होती है। उनकी कृपा से शनि ग्रह से जुड़ी समस्याओं जैसे देरी से विवाह, संतान प्राप्ति में बाधा, नौकरी में परेशानी आदि से मुक्ति मिलती है।
इसके अतिरिक्त माँ कालरात्रि की उपासना से राहु और केतु जैसे ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को भी कम किया जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र में राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है, जो अचानक धन हानि, दुर्घटना और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। माँ कालरात्रि की उपासना से इन ग्रहों के प्रकोप से रक्षा होती है।
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की विधि-विधान से पूजा करने और उनकी उपासना करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। माँ कालरात्रि हमें अंधकार और अज्ञान से दूर रहने तथा सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने की प्रेरणा देती हैं। उनके आशीर्वाद से हम अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं। आइए, इस नवरात्रि माँ कालरात्रि की कृपा प्राप्त करें और उनके दिव्य आशीर्वाद से अपने जीवन को सफल बनाएं।
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नवरात्रि के नौ दिनों में से प्रत्येक दिन एक अलग देवी को समर्पित होता है। सातवां दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है। वे शक्ति और शौर्य की प्रतीक मानी जाती हैं।
माँ कालरात्रि काले रंग की घोड़े पर सवार हैं। उनके चार हाथ होते हैं, जिनमें से एक हाथ में खड्ग, दूसरा हाथ में त्रिशूल, तीसरा हाथ में अभय मुद्रा और चौथा हाथ में वरद मुद्रा होती है। उनके गले में मुंडों की माला और शरीर से अंधकार की किरणें निकलती हैं। उनके आसपास भूत-प्रेत मंडराते रहते हैं। यह स्वरूप उनकी दिव्य शक्तियों का प्रतीक है।
नवरात्रि में माँ कालरात्रि की उपासना करने से अनेक लाभ मिलते हैं। वे अंधकार और अज्ञान को दूर करती हैं, भय और शत्रुओं से मुक्ति दिलाती हैं, जीवन में आने वाले कष्टों का निवारण करती हैं और सच्ची मनोकामनाओं को पूरा करती हैं। उनकी कृपा से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
नवरात्रि में माँ कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान से पूजा की जा सकती है। इसके अतिरिक्त आप व्रत रख सकते हैं, सरसों के तेल का दीप जला सकते हैं, दान कर सकते हैं, माँ कालरात्रि से जुड़ी कथा सुन सकते हैं और ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं। ये उपाय उनकी कृपा प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में नवरात्रि के सातवें दिन का संबंध शनि ग्रह से माना जाता है। माँ कालरात्रि की उपासना शनि ग्रह के दुष्प्रभावों को कम करने में सहायक होती है। इससे शनि से जुड़ी समस्याओं जैसे विवाह में देरी, संतान प्राप्ति में बाधा, नौकरी में परेशानी आदि से मुक्ति मिल सकती है। साथ ही राहु और केतु जैसे ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को भी कम किया जा सकता है।
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