भक्ति और समर्पण की भावना से भगवान को भोग अर्पित करना हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण परंपरा है। माना जाता है कि भगवान को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भोग लगाया जाता है। भोग लगाने की प्रक्रिया में कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है:
भोग लगाने के बाद यह मंत्र बोलना शुभ माना जाता है:
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये। गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।
अर्थ: हे ईश्वर, मेरे पास जो भी है वह आपका ही दिया हुआ है। मैं आपका दिया हुआ आपको ही समर्पित करता हूं। कृपा करके इसे ग्रहण करें और मुझ पर प्रसन्न हों।
भोग लगाने के लिए धातु के पात्र सबसे उपयुक्त माने जाते हैं। आप सोने, चांदी, तांबे या पीतल के पात्र का उपयोग कर सकते हैं। मिट्टी या लकड़ी के पात्र भी उपयुक्त होते हैं। एल्यूमीनियम, लोहे, स्टील या प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग भोग लगाने के लिए नहीं करना चाहिए।
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भगवान को उनके प्रिय भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है। आप विभिन्न प्रकार के सात्विक भोग लगा सकते हैं, जैसे कि:
फल: ताजे मौसमी फल जैसे आम, केला, सेब, संतरा आदि।
मिठाई: खीर, हलवा, लड्डू, पंचामृत आदि।
पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण।
सूखे मेवे: बादाम, काजू, किशमिश, इलायची आदि।
पके हुए व्यंजन: पूरिया, सब्जी, खिचड़ी आदि (कुछ परंपराओं में)।
यह आवश्यक नहीं है कि आप रोज भोग लगाएं। भगवान को आपकी भक्ति और सच्चे मन से की गई प्रार्थना ही सबसे ज्यादा पसंद होती है। लेकिन अगर आप भगवान को भोग लगाते हैं, तो उसे श्रद्धा और शुद्ध भाव से लगाएं।
भगवान को भोग लगाने के पीछे कई कारण हैं:
समर्पण: भगवान को भोग लगाना उनके प्रति कृतज्ञता और समर्पण व्यक्त करने का एक तरीका है।
आशीर्वाद प्राप्त करना: माना जाता है कि भगवान को भोग लगाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है।
ईश्वर से जुड़ाव: भोग लगाने की प्रक्रिया हमें ईश्वर के प्रति सचेतन और कृतज्ञ बनाती है।
भोग लगाने के बाद थोड़ा समय मौन रहकर ईश्वर का ध्यान करें और उन्हें प्रार्थना करें।
भगवान को लगाया हुआ भोग प्रसाद के रूप में ग्रहण करें और परिवार के अन्य सदस्यों में भी बांटें।
बचे हुए भोग को फेंकने की बजाय गाय या जरूरतमंद को दे दें।
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