श्रावण अमावस्या व्रत हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है। यह व्रत भगवान शिव, जिन्हें ‘कैलाशपति’ और ‘शंभू’ के नाम से भी जाना जाता है, और माता पार्वती, जिन्हें ‘शक्ति’ और ‘ जगदम्बा’ के नाम से भी जाना जाता है, को समर्पित है। यह व्रत हर साल श्रावण मास की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। श्रावण का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है और इस महीने में किए गए सभी धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है।
आने वाले वर्ष 2024 में, श्रावण अमावस्या का व्रत 04 अगस्त रविवार को पड़ेगा।
श्रावण अमावस्या व्रत के अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए पूजा का विधान विधिपूर्वक करना आवश्यक है। यहां श्रावण अमावस्या व्रत की पूजा विधि बताई गई है:
श्रावण अमावस्या का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत को रखने के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं श्रावण अमावस्या व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से:
श्रावण अमावस्या का व्रत रखने से व्यक्ति को शारीरिक और आत्मिक दोनों ही तरह के लाभ प्राप्त होते हैं। आइए जानते हैं श्रावण अमावस्या व्रत रखने के कुछ प्रमुख लाभों के बारे में:
श्रावण अमावस्या व्रत के महत्व को समझने के लिए इससे जुड़ी कुछ कथाओं को जानना भी आवश्यक है। आइए जानते हैं ऐसी ही दो प्रमुख कथाओं के बारे में:
1. समुद्र मंथन और हलाहल विष:
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत के साथ ही भयंकर विष हलाहल भी निकला था। यह विष इतना जहरीला था कि संपूर्ण सृष्टि के विनाश का खतरा मंडराने लगा। सभी देवी-देवता भयभीत हो गए। तब भगवान शिव ने विष का सेवन कर लिया। विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें ‘नीलकंठ’ भी कहा जाता है। भगवान शिव ने विष को अपने कंठ में ही रोक लिया, जिससे सृष्टि का विनाश टल गया। श्रावण अमावस्या के दिन भगवान शिव ने विष का सेवन किया था, इसलिए इस दिन उनकी विशेष पूजा की जाती है।
2. श्रवण कुमार और माता सती:
श्रवण कुमार एक धर्मपरायण पुत्र थे, जो अपने माता-पिता की सेवा में तत्पर रहते थे। एक श्रावण अमावस्या के दिन जंगल से पानी लाते समय उन्हें राजा दशरथ के बाण से लग गया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। श्रवण कुमार की मृत्यु से उनकी माता अत्यधिक दुखी हुईं। उनकी दुःख की पुकार सुनकर महर्षि वाल्मीकि क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया। इस कथा के अनुसार, श्रावण अमावस्या के दिन पितरों का स्मरण और तर्पण करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
श्रावण अमावस्या व्रत का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ बातों के बारे में:
श्रावण अमावस्या व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने का एक उत्तम अवसर है। इस व्रत को रखने से कई लाभ प्राप्त होते हैं, जिनमें आत्मिक शुद्धि, मनोबल में वृद्धि, ईश्वर के प्रति समर्पण, संयम और अनुशासन, पारिवारिक सुख और शांति आदि शामिल हैं। श्रावण अमावस्या व्रत की कथाएं हमें भगवान शिव के महत्त्व और माता-पिता की सेवा करने के महत्व का भी बोध कराती हैं। उम्मीद है कि यह लेख आपको श्रावण अमावस्या व्रत के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
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श्रावण अमावस्या व्रत से दो प्रमुख कथाएं जुड़ी हुई हैं:
पहली कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जिसमें भगवान शिव ने जहरीले विष हलाहल का सेवन कर सृष्टि को बचाया था।
दूसरी कथा श्रवण कुमार और माता सती से जुड़ी है, जिसमें श्रावण अमावस्या के दिन श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई थी। उनकी माता के दुःख की वजह से महर्षि वाल्मीकि ने राजा दशरथ को श्राप दिया था। इन कथाओं से हमें भगवान शिव के महत्त्व और माता-पिता की सेवा करने के महत्व का बोध होता है।
श्रावण अमावस्या व्रत रखते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, जैसे:
यदि आप किसी बीमारी से ग्रसित हैं, तो व्रत रखने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
व्रत के दौरान सात्विक भोजन का ही सेवन करें, जैसे फल, दूध, दही और पानी।
क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या जैसे नकारात्मक विचारों से दूर रहें।
पूजा के लिए आवश्यक सामग्री पहले से ही जुटा लें।
श्रद्धा और समर्पण भाव से व्रत रखें।
श्रावण अमावस्या व्रत का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने का एक उत्तम अवसर है। इस व्रत को रखने से कई लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे:
पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति
सुख-समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति
संतान प्राप्ति का आशीर्वाद
आत्मिक शुद्धि और मनोबल में वृद्धि
ईश्वर के प्रति समर्पण और जीवन में सही दिशा प्राप्ति
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