अनंत चतुर्दशी

Anant Chaturdashi 2024 :अनंत चतुर्दशी कब है, तिथि, महत्व और पौराणिक कथाएं

अनंत चतुर्दशी, हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह भगवान विष्णु को समर्पित एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और उनसे अनंत सुख, समृद्धि और ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।

Anant Chaturdashi 2024

2024 में अनंत चतुर्दशी की तिथि और समय

2024 में, अनंत चतुर्दशी रविवार, 15 सितंबर को पड़ रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार, चतुर्दशी तिथि का आरंभ 14 सितंबर, 2024 को सुबह 09:02 बजे होगा और इसका समापन 15 सितंबर, 2024 को सुबह 11:15 बजे होगा। इस शुभ अवसर पर भक्त विधि-विधान से पूजा करके भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

अनंत चतुर्दशी का धार्मिक महत्व

अनंत चतुर्दशी का विशेष धार्मिक महत्व है। आइए जानते हैं इस दिन मनाए जाने वाले प्रमुख कार्यों और उनकी महत्ता के बारे में:

  • भगवान विष्णु की आराधना: अनंत चतुर्दशी का मुख्य उद्देश्य भगवान विष्णु की पूजा और आराधना करना है। इस दिन भक्त उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए विधिपूर्वक पूजा करते हैं। भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनकर्ता और सौम्य स्वरूप के देवता के रूप में जाना जाता है। उनसे सुख, शांति, समृद्धि, वैभव और मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।
  • अनंत धागा (सूत्र) का निर्माण और धारण: अनंत चतुर्दशी के दिन एक विशेष प्रकार का धागा तैयार किया जाता है, जिसे “अनंत धागा” या “अनंत सूत्र” के नाम से जाना जाता है। इस धागे को बनाने के लिए 14 गांठें लगाई जाती हैं, जो भगवान विष्णु के 14 लोकों का प्रतीक मानी जाती हैं। पूजा के बाद, इस धागे को भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है और फिर भक्त इसे अपनी कलाई पर धारण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि अनंत धागा धारण करने से व्यक्ति को अनेक लाभ मिलते हैं, जैसे दुर्भाग्य से रक्षा, सौभाग्य की प्राप्ति, और शत्रुओं पर विजय।
  • गणेश विसर्जन: अनंत चतुर्दशी का दिन गणेश उत्सव के समापन का प्रतीक भी माना जाता है। इस दिन गणेश जी की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। भक्त पूरे उत्साह के साथ गणेश जी को विदा देते हैं और अगले वर्ष उनके शीघ्र आगमन की कामना करते हैं।

अनंत चतुर्दशी की विधि

अनंत चतुर्दशी मनाने के लिए एक सरल लेकिन विधिपूर्वक पूजा की जाती है। यहां विस्तृत पूजा विधि बताई गई है:

  • पूजा की तैयारी: सबसे पहले, पूजा की तैयारी करें। इसके लिए स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करें और वहां चौकी या आसन बिछाएं।
  • पूजा सामग्री: अब पूजा के लिए आवश्यक सामग्री एकत्रित करें। इनमें शामिल हैं – दीपक, अगरबत्ती, गंगाजल, रोली, मौली, चंदन, तुलसी की पत्तियां, फूल, फल, मिठाई, पान का पत्ता, सुपारी, कौड़ी, धूप, और अनंत धागा बनाने के लिए सूत।
  • मूर्ति स्थापना: कलश स्थापना के पश्चात, भगवान विष्णु की एक मूर्ति को पूजा स्थल पर स्थापित करें। यदि आपके पास भगवान विष्णु की कोई मूर्ति नहीं है, तो आप शालिग्राम शिला का भी उपयोग कर सकते हैं।
  • आवाहन और स्नान: अब भगवान विष्णु का आवाहन करें और उन्हें मूर्ति या शिलाग्राम में विराजमान होने का निवेदन करें। इसके बाद, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण) से भगवान का स्नान कराएं।
  • अष्तधातु की मूर्ति: यदि आप किसी अष्टधातु की मूर्ति का उपयोग कर रहे हैं, तो पंचामृत के स्थान पर जल से स्नान कराएं।
  • वस्त्र और आभूषण: भगवान विष्णु को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें। आप उन्हें तुलसी की माला भी पहना सकते हैं।
  • अभिषेक: इसके बाद, भगवान विष्णु का अभिषेक करें। आप उन्हें दूध, दही, शहद, घी, इत्र, आदि से स्नान करा सकते हैं।
  • अनंत धागा निर्माण: अब पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, अनंत धागा तैयार किया जाता है। लगभग 1 मीटर लंबा सूत का धागा लें और उस पर 14 गांठें लगाएं। हर गांठ लगाते समय, भगवान विष्णु के एक-एक लोक का नाम लें।
  • पंचामृत और तुलसी: पूजा के दौरान, भगवान विष्णु को तुलसी की पत्तियां, फूल, फल और मिठाई का भोग अर्पित करें। साथ ही, उन्हें पंचामृत भी चढ़ाएं।
  • आरती: भगवान विष्णु की आरती करें। आप किसी भी आरती का पाठ कर सकते हैं या फिर “ॐ विष्णवे नमः” मंत्र का जाप कर सकते हैं।
  • हवन ( वैकल्पिक ): आप चाहें तो हवन भी कर सकते हैं। हवन के लिए शुद्ध घी, लकड़ी, और पूजा की अन्य सामग्री की आवश्यकता होती है। हवन वैकल्पिक है और आप अपनी सुविधा के अनुसार इसे कर सकते हैं।
  • अनंत धागा धारण: पूजा के समापन पर, भगवान विष्णु को अर्पित किया गया अनंत धागा ग्रहण करें। इस धागे को अपनी दाहिनी कलाई पर धारण करें।
  • प्रसाद वितरण: अंत में, भगवान को लगाए गए भोग का प्रसाद के रूप में वितरण करें। प्रसाद ग्रहण करने से पहले भगवान का प्रसाद मान लेना चाहिए।

अनंत चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथाएं

अनंत चतुर्दशी से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जो इस दिन के महत्व को दर्शाती हैं। आइए उनमें से दो प्रमुख कथाओं को जानते हैं:

  • प्रथम कथा: राजा बलि और वामन अवतार: पहली कथा राजा बलि और भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है। राजा बलि एक पराक्रमी राजा थे, जिन्होंने स्वर्गलोक पर विजय प्राप्त कर ली थी। देवताओं को भय हुआ कि राजा बलि तीनों लोकों पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लेंगे। इसलिए, भगवान विष्णु वामन रूप में प्रकट हुए और राजा बलि से दान में तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि ने सहर्ष दान देने का वचन दिया।वामन रूप धर कर भगवान विष्णु ने अपने पहले दो पदों में पृथ्वी और आकाश को नाप लिया। जब तीसरा पद रखने की बारी आई, तो राजा बलि को समझ आ गया कि वे वामन रूप में साक्षात भगवान विष्णु हैं। राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया और भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का अधिपति बना दिया।
  • द्वितीय कथा: सुशीला और अनंत: दूसरी कथा अनंत नामक सर्प और सुशीला नामक कन्या से जुड़ी है। प्राचीन काल में, सुमंत नामक एक ऋषि थे। उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उनके यहां एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया, जिसका नाम सुशीला रखा गया। सुशीला के जन्म के कुछ ही दिनों बाद दीक्षा का देहांत हो गया। ऋषि सुमंत पुत्री के पालन-पोषण में लगे रहे।

जब सुशीला बड़ी हुई, तो उसका विवाह कश्यप नामक राजकुमार से हुआ। विवाह के बाद सुशीला को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। जन्म के समय, शिशु का शरीर सर्प के समान था। सुशीला घबरा गईं और उन्होंने अपने पुत्र को जंगल में छोड़ दिया।

जंगल में एक सर्प ने शिशु को देखा और उसकी देखभाल करने लगा। बड़ा होने पर, शिशु अनंत नाम से जाना गया। अनंत यह जानकर क्रोधित हुआ कि उसे जंगल में छोड़ा गया था। वह अपनी माता सुशीला से बदला लेने का निर्णय लिया।

जब अनंत सुशीला के पास पहुंचा, तो वह घबरा गईं। लेकिन अनंत ने उन्हें बताया कि वह उनका पुत्र है और उनसे बदला लेने नहीं आया है। सुशीला को गहरा पछतावा हुआ और उन्होंने अपने पुत्र को क्षमा मांगी।

अनंत ने अपनी माता को आश्वासन दिया कि वह उनका रक्षक बनेगा। इसके बाद, अनंत हमेशा सुशीला की रक्षा करता रहा। इस कथा के अनुसार, अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और अनंत धागा धारण करने से व्यक्ति को अनंत काल तक सुरक्षा प्राप्त होती है।

अनंत चतुर्दशी के व्रत का महत्व

अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को कई लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे –

  • सुख-समृद्धि: व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: अनंत चतुर्दशी के व्रत से मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • मनोकामना पूर्ति: इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की सच्ची श्रद्धा से पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
  • शत्रु नाश: अनंत चतुर्दशी का व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में भी सहायक होता है।

उपसंहार

अनंत चतुर्दशी का त्योहार भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि पाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने, व्रत रखने और अनंत धागा धारण करने से व्यक्ति को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

इस लेख में हमने अनंत चतुर्दशी की तिथि, महत्व, पूजा विधि, पौराणिक कथाएं और व्रत के महत्व के बारे में विस्तार से जाना। आप इस शुभ दिन पर भगवान विष्णु की आराधना करके अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।

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पूछे जाने वाले प्रश्न

अनंत चतुर्दशी का क्या महत्व है?

अनंत चतुर्दशी का विशेष धार्मिक महत्व है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उनसे सुख, शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। साथ ही, इस दिन अनंत धागा बनाकर धारण करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि अनंत धागा धारण करने से व्यक्ति को अनेक लाभ मिलते हैं, जैसे दुर्भाग्य से रक्षा, सौभाग्य की प्राप्ति, और शत्रुओं पर विजय। इसके अलावा, अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश चतुर्थी के समापन के रूप में गणेश जी की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।

अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि क्या है?

अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि सरल है। इसमें सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को साफ करें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम स्थापित करें। फिर उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं, वस्त्र और आभूषण अर्पित करें। इसके पश्चात, भगवान विष्णु को तुलसी की पत्तियां, फूल, फल और मिठाई का भोग लगाएं। पूजा के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में, लगभग 1 मीटर लंबे सूत के धागे पर 14 गांठें लगाकर अनंत धागा तैयार किया जाता है। अंत में, भगवान विष्णु को अर्पित किया गया अनंत धागा ग्रहण करें और अपनी दाहिनी कलाई पर धारण करें। पूजा के समापन पर भगवान को लगाए गए भोग का प्रसाद के रूप में वितरण करें।

अनंत चतुर्दशी के व्रत का क्या महत्व है?

अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इसके अलावा, अनंत चतुर्दशी का व्रत मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है, मनोकामनाएं पूरी करता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में भी सहायक होता है।

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