संत गुरु रविदास भारत के उन महान आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं, जिन्होंने अपना जीवन समाजिक सुधार और भक्ति के प्रचार में समर्पित कर दिया। जाति-पाँति के बंधनों को तोड़कर समाज में समानता और न्याय स्थापित करने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके जीवन और कार्यों पर प्रकाश डालते हैं यह लेख।
संत गुरु रविदास का जन्म सन 1433 ईस्वी में माघ पूर्णिमा के दिन वाराणसी में हुआ था। उनके पिता, संतोक दास, चर्मकार (मोची) जाति के थे। उस समय, यह जाति निम्न मानी जाती थी, परंतु रविदास जी ने कभी भी अपनी जाति को अपनी आध्यात्मिक उन्नति में बाधा नहीं बनने दिया।
समाज की रूढ़िवादिता को चुनौती देते हुए, उन्होंने अपना पूरा जीवन ईश्वर की भक्ति और मानव सेवा में लगा दिया। उनके जीवन में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान था और उन्होंने अपने शिष्यों को भी पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया।
गुरु रविदास जी भक्ति मार्ग के अनन्य अनुयायी थे। उनकी भक्ति भाव से ओतप्रोत गीत, दोहे और भजन आज भी लोगों को आध्यात्मिकता की राह दिखाते हैं। उनकी रचनाओं में समाज में व्याप्त कुरीतियों, छुआछूत, जातिवाद और भेदभाव की कटु आलोचना मिलती है। उन्होंने अपनी वाणी से सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया।
रविदास जी का मानना था कि ईश्वर की प्राप्ति जाति या धर्म से नहीं, बल्कि सच्ची भक्ति और शुद्ध आचरण से होती है। उन्होंने लोगों को जाति-पाँति से ऊपर उठकर एकजुट होने का संदेश दिया।
रविदास जी शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि शिक्षा ही समाज में बदलाव ला सकती है। उन्होंने लोगों को शिक्षित करने और ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने शिष्यों को न केवल आध्यात्मिक साधना, बल्कि समाज सेवा के लिए भी प्रेरित किया।
उनका कहना था कि ईश्वर की सच्ची भक्ति तभी सार्थक है, जब हम अपने दुखी और जरूरतमंद भाइयों की सेवा करें। इसलिए उन्होंने समाज सेवा को धर्म का अभिन्न अंग माना।
संत गुरु रविदास का प्रभाव केवल भारत तक ही सीमित नहीं रहा। उनकी रचनाओं का अनुवाद अनेक भाषाओं में किया गया है और उनके संदेश अब भी लोगों को प्रेरित करते हैं। भक्ति, समता और न्याय के प्रचारक के रूप में, उन्होंने सदियों से चले आ रहे सामाजिक भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया।
आज भी समाज में भाईचारे, समानता और न्याय स्थापित करने के लिए उनके विचार काफी प्रासंगिक हैं। हमें उनके जीवन और कार्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए और अपने समाज को एक बेहतर स्थान बनाने का प्रयास करना चाहिए।
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संत गुरु रविदास का जन्म सन 1433 ईस्वी में माघ पूर्णिमा के दिन वाराणसी में हुआ था। उनके पिता संतोक दास, चर्मकार (मोची) जाति के थे। उस समय उनकी जाति को निम्न माना जाता था, लेकिन रविदास जी ने कभी भी इसे अपनी आध्यात्मिक ऊंचाई में बाधा नहीं बनने दिया।
रविदास जी के प्रमुख योगदानों में शामिल हैं:
भक्ति और सामाजिक सुधार: उन्होंने भक्ति मार्ग का प्रचार किया और समाज में व्याप्त कुरीतियों, जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई।
शिक्षा और सेवा: उन्होंने लोगों को शिक्षित होने और ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही, समाज सेवा को धर्म का अहम हिस्सा बताया।
समता और न्याय की स्थापना: उन्होंने जाति-पाँति के बंधनों को तोड़कर सबको समान मानने का संदेश दिया और समाज में न्याय की स्थापना का प्रयास किया।
रविदास जी ने कई भक्ति गीत, दोहे और भजन लिखे, जिनमें से उनकी रचनाएँ “आदि ग्रंथ” और “बीजक” में संकलित हैं। इन रचनाओं में उनकी सामाजिक चेतना और ईश्वर के प्रति प्रेम स्पष्ट रूप से झलकता है।
रविदास जयंती हर साल माघ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस दिन लोग उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं और उनके संदेशों को याद करते हैं।
गुरु रविदास जी के विचार आज भी समाज में भाईचारे, समानता और न्याय स्थापित करने के लिए काफी प्रासंगिक हैं। समाजिक भेदभाव और अन्याय के खिलाफ उनका संघर्ष हमें प्रेरित करता है कि हम भी एक बेहतर और न्यायपूर्ण समाज बनाने का प्रयास करें।
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