माघ मास की पवित्रता के बीच आने वाली षटतिला एकादशी (6 फरवरी 2024) मोक्ष की ओर जाने वाला एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह दिन भगवान विष्णु की आराधना के लिए समर्पित होता है, जहां तिल का खास इस्तेमाल आध्यात्मिक शुचिता और पुण्य की वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। आइए जानें इस पावन व्रत के महत्व, विधि और इससे जुड़ी कथा के बारे में।
षटतिला एकादशी व्रत को भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का उत्तम साधन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से की गई पूजा मोक्ष के द्वार खोलती है। तिल का दान महापुण्य फल प्रदान करता है और जन्म-जन्म की निरोगता का वरदान देता है। इस व्रत को करने से न केवल शारीरिक व आध्यात्मिक पवित्रता का अनुभव होता है, बल्कि धन-धान्य में भी वृद्धि होती है।
षटतिला एकादशी व्रत का आरंभ दशमी तिथि को स्नान एवं स्वच्छ वस्त्रधारण से होता है। एकादशी तिथि की सुबह जल्दी उठकर स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद विष्णु जी की विधिवत पूजा की जाती है, जिसमें तिल का हवन विशेष महत्व रखता है। दिन भर भगवान का नाम जप करना और उपवास रखना इस व्रत का अभिन्न अंग है। द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर व्रत को पूर्ण किया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक वृद्ध ब्राह्मणी ने एक मास तक व्रत किया, परन्तु उन्होंने कभी किसी को अन्नदान नहीं दिया। फलस्वरूप, उनका शरीर कमजोर हो गया। भगवान विष्णु ने उनकी परीक्षा लेने के लिए भिक्षुक का रूप धारण कर उनसे भिक्षा मांगी। ब्राह्मणी ने केवल मिट्टी का पिंड दे दिया। ब्राह्मणी के स्वर्गवास के बाद उन्हें एक आम का पेड़ और घर प्राप्त हुआ, परन्तु घर में अन्न नहीं था। भगवान विष्णु ने उन्हें समझाया कि दान के बिना धार्मिक कार्य अधूरे रहते हैं। इसके बाद ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का व्रत किया और तिल का दान दिया, जिससे उनका घर धन्य-धान्य से भर गया।
षटतिला एकादशी व्रत भगवान विष्णु की कृपा पाने और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने का एक प्रभावी तरीका है। यह व्रत हमें दान के महत्व को भी याद दिलाता है। अतः, इस पावन अवसर पर तिल के साथ भक्ति और दान का सम्मेलन कर मोक्ष की ओर अग्रसर हों और जीवन में सुख-समृद्धि लाएं।
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षटतिला एकादशी भगवान विष्णु की आराधना के लिए समर्पित पावन व्रत है। इसे मोक्ष की प्राप्ति, शारीरिक और आध्यात्मिक शुचिता तथा धन-धान्य में वृद्धि के लिए किया जाता है। इस दिन तिल का विशेष प्रयोग पुण्य फल को बढ़ाता है और व्रत को और भी पवित्र बनाता है।
व्रत दशमी तिथि से शुरू होता है, जिसमें स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं। एकादशी तिथि की सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद विष्णु जी की विधिवत पूजा की जाती है, जिसमें तिल से हवन करना अनिवार्य है। दिन भर भगवान का नाम जप और उपवास व्रत के महत्वपूर्ण अंग हैं। द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान के साथ व्रत पूरा किया जाता है।
तिल को हिंदू धर्म में पवित्र और शुभ माना जाता है। यह सौभाग्य, बुद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है। षटतिला एकादशी में तिल का इस्तेमाल पूजा, हवन और दान के रूप में किया जाता है। इसका उद्देश्य बुद्धि और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाना, पापों को दूर करना और शुभ फल प्राप्त करना होता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक वृद्ध ब्राह्मणी ने एक मास तक उपवास किया, लेकिन उन्होंने कभी किसी को अन्नदान नहीं दिया। फलस्वरूप, उनका शरीर कमजोर हो गया। भगवान विष्णु ने उनकी परीक्षा लेने के लिए भिक्षुक का रूप धारण कर उनसे भिक्षा मांगी, परन्तु ब्राह्मणी ने केवल मिट्टी का पिंड दे दिया। स्वर्ग में भी उन्हें अन्न की कमी खलने लगी। भगवान विष्णु ने समझाया कि दान के बिना धार्मिक कर्म अधूरे हैं। इसके बाद ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का व्रत किया और तिल का दान दिया, जिससे उनका घर धन्य-धान्य से भर गया। यह कथा दान के महत्व को रेखांकित करती है।
इस व्रत के कई लाभ बताए जाते हैं, जैसे –
मोक्ष की प्राप्ति के लिए मार्ग प्रशस्त करना।
शारीरिक और आध्यात्मिक शुचिता बढ़ाना।
तन-मन की निरोगता प्राप्त करना।
धन-धान्य में वृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद पाना।
पापों को दूर कर पुण्य फल अर्जित करना।
इस पावन व्रत को कर आप भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त कर आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों तरह का सुख-समृद्धि का अनुभव कर सकते हैं।
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